History of Red Fort in Hindi लाल किले का इतिहास
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History of Red Fort in Hindi
किसी भी देश की राजधानी उसकी पहचान होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि सारी दुनिया में कोई भी देश अपनी राजधानी के नाम से ही जाना जाता है। इस तरह हमारे देश की पहचान है – दिल्ली और दिल्ली की पहचान हैं – इसकी ऐतिहासिक इमारतें। यहाँ की प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण इमारतों में से एक है लाल किला। लाल किले का यह नाम इसलिए पड़ा, क्योंकि यह लाल पत्थरों से बना है। यह दुनिया के सबसे शानदार महलों में से एक है। यह न केवल दिल्ली के लोगों, बल्कि हर हिंदुस्तानी के दिल के करीब है। इसकी खास वजह यह है कि इस किले के साथ भारत का इतिहास भी बहुत नज़दीक से जुड़ा है। यहीं से अंग्रेज़ों ने अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह ज़फर को पद से हटाया था, जिस कारण तीन सौ साल से चले आ रहे मुगल शासन का अंत हो गया। यहीं से भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारत के स्वतंत्र होने की घोषणा की थी।
11 साल तक आगरा से शासन करने के बाद शाहजहाँ ने तय किया कि राजधानी को दिल्ली लाया जाए। सन् 1618 में यहाँ लाल किले की नींव रखी गई। फिर सन् 1647 में इसका उद्घाटन हुआ। यह किला करीब डेढ़ मील के दायरे में फैला है और अनियमित अष्टभुजाकार आकार में बना है। इसके दो प्रवेश द्वार हैं, लाहौरी गेट और दिल्ली गेट। लाहौरी गेट से होते हुए हम छत्ता चौक पहुँचते हैं। यह एक समय शाही बाजार हुआ करता था और इसमें दबारी, जौहरी, चित्रकार, कालीन बनाने वाले, रेशम के बुनकरों आदि के परिवार रहा करते थे।
दीवान-ए-आम लाल किले का सार्वजनिक प्रेक्षागृह है। सेंड स्टोन से बना, शेल प्लास्टर से ढका यह कक्ष हाथी दाँत से बना हुआ लगता है। मुगल शासक यहाँ दरबार लगाते थे और खास और विदेशी मेहमानों से मुलाकात करते थे। यहाँ की पिछली दीवार में एक लतामंडप बना है, जहाँ बादशाह सुंदर पच्चीकारी से बनी संगमरमर की एक बेंच पर बैठा करते थे। यह सफेद संगमरमर का बना ऐसा मंडप है, जिसके चारों ओर बारीक तराशे गए खंभे हैं। यह अत्यंत सुंदर है। मेहमानखाना होने की वजह से यहाँ की सजावट बहुत खास तरीके से की गई है। एक समय दीवान-ए-खास अपने मयूर सिंहासन के लिए भी जाना जाता था, लेकिन बाद में उसे नादिरशाह ने हथिया लिया था। भले ही लाल किले को बने सैकड़ों साल बीत चुके हों, लेकिन यह आज भी भारत के वैभव और गौरव की याद दिलाता है।
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