Responsibilities of Citizens at the Time of National Crisis in Hindi
|Read what are the Responsibilities of Citizens at the Time of National Crisis in Hindi. This topic is for the nation and students who want to do something when our nation is in problem or crisis. राष्ट्रीय संकट के समय नागरिकों के कर्तव्य।
Responsibilities of Citizens at the Time of National Crisis in Hindi
नागरिक की अवधारणा आधुनिक समाज की देन है। आधुनिक समाज ने सभी नागरिकों को व्यापक रूप से न केवल अधिकारों से युक्त किया है अपितु उनके लिए कुछ कर्तव्य भी निर्धारित किए हैं। आधुनिक समाज पर जब किसी प्रकार के विचार विमर्श का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है तब निष्कर्षतः एक विशेषता को आधुनिक समाज की मूल विशिष्टता कह कर संबोधित किया जाता है। वह विशेषता यह है कि व्यक्ति ही मानवीय-जीवन अथवा समूची मानव-सभ्यता का केन्द्र है। वह असीमित संभावनाओं और उत्पादक शक्तियों से भरा हुआ है। अत: सामाजिक-ऐतिहासिक गतिविधियों को संचालित करने अथवा अमानवीय स्थितियों-परिस्थितियों अथवा घटनाओं को नियंत्रित करने का कार्य मूलत: व्यक्ति-सापेक्ष ही होता है। अत: व्यक्ति ही आधुनिक मानव सभ्यता का मूल अवतार है। हमारी श्रद्धा भक्ति एवं सभी प्रकार की संभावनाओं का एकमात्र आलंबन है।
भारतीय समाज, जो कि मूलतः एक धर्मप्राण समाज रहा है, उसमें आधुनिक मनुष्य को स्वाभाविक और अत्यंत सहज रूप से देखा और परखा जा सकता है। भारतीय समाज का इतिहास, यहां की सांस्कृतिक सभ्यता और परम्परा आदि प्राचीनकाल से ही मानवतावादी रही है। मध्यकालीन संत कवि चंडीदास ने भारतीय संस्कृति की इस मानवतावादी अन्तर्वस्तु को बड़े सुदंद ढंग से अभिव्यक्त किया है। उन्होंने अत्यंत सहज एवं स्पष्ट भाषा में कहा है कि मानव संसार का सबसे बड़ा सत्य है, इसके अलावा इस संसार में अन्य कोई सत्य उपस्थिति नहीं इसके बाद भी जिस दैवीय बोध को भारतीय समाज स्वीकार करता आया है वह उसे सम्पूर्ण रूप से एक सचेत और सजग नागरिक के रूप में पुनर्गठित नहीं होने देता था।
इसकी क्षतिपूर्ति आधुनिक भारतीय समाज में हो गयी जब यहाँ निवास करने वाला हर व्यक्ति संवैधानिक रूप से एक विशुद्ध नागरिक के रूप में परिभाषित हो गया। और उसका समस्त व्यक्तित्व शनैः शनैः राष्ट्रोन्मुख होता चला गया।
अभी तक भारतीय समाज ने अनेकानेक विकट और संकटमय स्थितियों का सामना किया है – सामाजिक-संकट, सांस्कृतिक-संकट, प्राकृतिक संकट और राजनैतिक एवं आर्थिक संकट किन्तु भारतीय नागरिकों ने कभी भी अपने उत्साह को कम नहीं होने दिया, उसे शिथिल नहीं पड़ने दिया। सचमुच भारतीय ऐसे वीर पुरूष हैं जिन्होनें अपना जीवन जीना संकटो में रहकर ही सीखा हो। बाढ़, भूकंप, अकाल, महामारी, दुर्घटनाएं, विदेशी आक्रमण आदि अनेक दुर्भाग्यों से भारतीय नागरिकों को रोजाना ही सामना होता रहा। किन्तु उस समय ऐसे लोग दांतो तले ऊँगलियां ही दबाये रहें, जिस समय अपने समाज पर आये संकट का सामना करने के लिए पूरा का पूरा भारतीय समाज ही एकसूत्र में बंध गया। किसी भी प्रकार का व्यक्तिगत रोष, अलगाव, वैमनस्य अथवा अन्य किसी प्रकार का भेदभाव इस स्थिति में इनके चेहरों पर अप्रत्यक्ष रूप से भी नहीं दिखलायी पड़ा। मानों यह देश विविधताओं का देश न होकर, एक ही सोच वाली कोई सैनिक टुकड़ी हो। आज भी इसका अर्थ विदेशियों की समझ में नहीं आता।
जब भी भारत पर कोई विपदा पड़ी भारत के सभी नागरिक-निवासी एक स्वर में सरकार के साथ हो गये। तन से, मन से और धन से जो भी कोई जितना कर सकता था, संकट की स्थिति में उससे कहीं ज्यादा कर रहा था। कारगिल युद्ध के समय, अथवा गुजरात के भुज क्षेत्र में आए भूकंप सुनामी के समय हम सभी ने इसे अनुभव किया। घटना अगर गुजरात में घटी तो उससे निपटने के लिए सारा देश उमड़ पड़ा। सेवा, सहायता, धन और वस्त्र आदि अनेकानेक वस्तुएं और सामग्रियां सारे देश से संगृहित की जाने लगी और शीघ्रताशीघ्र उन्हें जरूरतमंदों के पास भेजा जाने लगा।
अभिप्राय यह है कि भारतीय संविधान अथवा लोकतंत्र ने नागरिकों के जिन कर्तव्यों को वांछनीय माना था, उन्हें पूरा करने वालों में, भारतीय नागरिक भाव, विचार एवं व्यवहार तीनों ही स्तरों पर खरे उतरे हैं।
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