RTI Act in Hindi (Right To Information) आरटीआई अधिनियम सूचना का अधिकार
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सूचना का अधिकारः एक महत्वपूर्ण कदम
चाणक्य पत्रिका ने ‘सूचना के अधिकार’ के नियम की महत्ता रेखांकन करते हुए लिखा है-“लंबे संघर्ष के बाद आखिर सूचना का अधिकार अधिनियम जम्मू-कश्मीर को छोड़कर देशभर में लागू हो गया। सरकारी कामकाज के संबंध में जानकारी प्राप्त करना किसी भी लोकतांत्रिक देश के नागरिक का बुनियादी अधिकार होता है। विश्व के 54 देशों में यह व्यवस्था मौजूद है। लेकिन हमारे यहाँ अंग्रेजों के जमाने की परिपाटी को चलाते हुए नागरिकों को यह हक नहीं दिया गया कि वे पर्दे के पीछे की तस्वीर देख सकें। लिहाजा सरकारों में विभिन्न स्तरों पर भ्रष्टाचार, लापरवाही, अकुशलता आदि समस्याएं दिनोंदिन पनपती रहीं। इस बीच अलबत्ता कुछ राज्यों ने इस अधिकार को मान्यता देने की पहल की। केन्द्रीय स्तर पर पहली बार यूपीए सरकार ने सूचना के अधिकार का कानून बनाने का वादा किया। संसद और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद सूचना के अधिकार का कानून अब लागू हो गया है।”
‘सूचना के अधिकार’ को अगर हम भारतीय राजनीति एवं प्रशासन के ‘लोकतांत्रिकरण’ की प्रक्रिया और प्रयास कहें तो कोई असंगत बात नहीं होगी। जैसा ऊपर भी संकेत किया गया है कि अंग्रेजों ने जिस तरह का प्रशासनिक ढांचा भारत में निर्मित और विकसित किया था, भारत में आजादी के काफी समय बाद तक भी उसी प्रशासनिक-ढांचे का उपयोग होता रहा। औपनिवेशिक शोषण के लिए ‘गोपनीयता’ और ‘अमूर्तता’ को अंग्रेजी शासन ने प्रमुखता के साथ ग्रहण किया था। किन्तु इस सोच के न होने पर भी भारत में वह ढांचा काफी लम्बे समय तक स्वीकृत बना रहा। यह शर्म की ही बात कही जाएगी।
किन्तु हम जिस प्रकार के समाज में आज रह रहे हैं, उसकी प्रकृति एवं उसका वास्तविक स्वरूप भी कुछ इस प्रकार का है कि उसमें प्रत्येक क्षेत्र पारदर्शी होना जरुरी बन गया है। अत: सरकारी तंत्र को भी इस क्षेत्र से बाहर नहीं माना जा सकता।
आज भारत की ही नहीं अपितु समस्त विश्व की सर्वाधिक शोचनीय समस्या ‘भ्रष्टाचार’ की समस्या है। आज सरकारी गतिविधियां इस भ्रष्टाचार के पंक-जाल में बेतहाशा फस्स चुकी हैं। कोई भी काम विना रिश्वत के हो जाना आज असंभव सा ही हो गया है। अत: इस स्थिति में एक साधारण आदमी स्वयं को पूर्णत: असहाय और मजबूर अनुभव करता है।
इस असहाय स्थिति को तोड़ने और जनता में सरकारी तंत्र के प्रति सकारात्मक दृष्टि विकसित करने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम, अपनी अतिशय महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकता है। वस्तुत: इस अधिनियम के निर्माण के पीछे जिस स्वस्थ उद्देश्य को हम निहित पाते हैं, वह यही है कि इसके माध्यम से तमाम प्रकार के प्रशासनिक कार्यों एवं उनकी गतिविधयों को पारदर्शी और स्पष्ट बनाया जाए: ताकि भ्रष्टाचार के लिए किसी भी प्रकार की संभावना शेष न बचे।
‘सूचना का अधिकार’ 12 सितम्बर, 2005 से ही समस्त भारत में लागू कर दिया गया है। इसका महत्व चाणक्य पत्रिका में इस प्रकार आंका है: ”देश में सूचना का अधिकार लागू होना एक क्रांतिकारी कदम है। इससे न केवल भ्रष्टाचार रूकेगा, बल्कि आम जनत मतलब की जानकारी भी मिल सकेगी।”
कुछेक क्षेत्रों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है, जिनमें सेवा और व्यापार से संबधित गोपनीय दस्तावेज आदि प्रमुख हैं।
यह कानून अपने प्रभाव को जल्द ही स्पष्ट करने लगा है और जनता में इसकी व्यापक स्वीकारोक्ति सहज ही देखी जा सकती है।
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