Sahyog Par Nibandh in Hindi सहयोग पर निबंध
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Sahyog Par Nibandh in Hindi
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना वह निरा पशु ही रहता है। मनुष्यों के परस्पर सहयोग एवं प्रेम से ही समाज बनता है। सहयोग जीवन का आधार है।
सहयोग शब्द सह+योग दो शब्दों के मेल से बना है। इसका अर्थ है एक दूसरे का साथ देना या हाथ बँटाना। आज विज्ञान के क्षेत्र का विकास किसी एक व्यक्ति की देन नहीं बल्कि अनेक नर-नारियों के सहयोग का परिणाम है। सहयोग से मानव की शक्ति कई गुणा बढ़ जाती है। जैसे एक तिनका कमजोर होता है मगर कई तिनकों के परस्पर मेल से मदमस्त हाथी को बाँधने वाला मजबूत रस्सा बनता है।
हमारे शरीर के सभी अंग सहयोग से ही शरीर को चलाते हैं। अगर किसी अंग पर चोट आती है तो दिमाग एकदम वहाँ पहुँच जाता है। तभी आँख वहाँ देखती है और हाथ सहायता के लिए वहाँ पहुँच जाता है। जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अंग परस्पर सहयोग करते हैं, उसी तरह समाज विकास के लिए व्यक्तियों का आपसी सहयोग अनिवार्य है। सहयोग वह पारस है जिससे लोहा भी सोना बन जाता है।
हितोपदेश में यह कथा आती है, कपोतराज चित्रग्रीव के साथ अनेक कबूतर आकाश में उड़े जा रहे थे। धरती पर दाना बिखरा देख सभी कबूतर नीचे उतर आए किन्तु कपोतराज नहीं। सभी कबूतर शिकारी के जाल में फंस गए। संकट के समय कपोतराज चित्रग्रीव ने उन्हें मिलकर उड़ने की राय दी। कबूतरों ने मिलकर ज़ोर लगाया और जाल को भी ले उड़े। शिकारी हाथ मलता रह गया। सहयोग का यह श्रेष्ठ उदाहरण है।
जीवन की कोई भी अवस्था हो चाहे बचपन, जवानी या बुढ़ापा । सहयोग के बिना हम कभी भी आगे बढ़ नहीं सकते। हमें अपने सहपाठियों से सहयोग करना चाहिए। कमजोर साथी की उसकी पढ़ाई में सहयोग देकर तथा गरीब साथी की धन से सहायता करनी चाहिए। खेल के मैदान में तो सहयोग के बिना सफलता मिल ही नहीं सकती।
बड़ी से बड़ी विपत्ति का मुकाबला सहयोग द्वारा किया जा सकता है। अंधे और लंगड़े की कहानी सहयोग का एक अद्भुत उदाहरण है। किसी गाँव में अंधा और लंगड़ा रहते थे। एक बार गाँव में बाढ़ आ गई। गाँव के सब लोग वहाँ से चले गए। अंधा और लंगड़ा ही केवल वहाँ रह गए। मुसीबत को सामने देख लंगड़े को एक उपाय सूझा । उसने अंधे से कहा, “तुम मुझे अपने कॅधे पर बैठा लो। मैं तुम्हें रास्ता बताता जाऊँगा। इस तरह हम बच जाएंगे। “एक ने कही और दूसरे ने मानी दोनों ब्रह्मज्ञानी”। इस तरह सहयोग से दोनों इस संकट से बच गए।
ऐसा कोई भी काम न करें, जिससे पड़ोसियों को कष्ट हो। इस तरह यदि आप सहयोग देंगे तो वह भी पीछे नहीं रहेंगे। प्रत्येक परिवार, पड़ोस, स्कूल, गाँव, संस्था आदि में सहयोग की आवश्यकता है। बड़े से छोटे तक, अधिकारी से चपड़ासी तक सब लोग संस्था के अंग हैं। अपने-अपने स्थान पर सब लोग अपना-अपना काम करते हैं। “एक और एक ग्यारह” के आपसी सहयोग से प्रत्येक संस्था दिन-दुगुनी, रात चौगुनी उन्नति करती हैं।
सहयोग से मनुष्य हर असम्भव कार्य को संभव बना सकता है। सहयोग वह बूंद है जो सीप में गिरकर मोती बन जाती है।
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