Science and Technology Essay In Hindi विज्ञान और तकनीकी पर निबंध
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Science and Technology Essay In Hindi विज्ञान और तकनीकी पर निबंध
Essay on Science and Technology In Hindi Language 300 Words
विज्ञान और तकनीकी की उन्नति ने विश्व के लोगो को बहुत लाभ पहुँचाया है। विज्ञान और तकनीकी के कारन ही हम आज बहुत अच्छा जीवन व्यतीत कर रहे है। प्राचीन समय मे विज्ञान और तकनीकी ना होने के कारन बहुत सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था, लेकिन आज दुनिआ की तस्वीर विज्ञान और तकनीकी ने बदल कर रख दी है। आगे बढ़ने के लिए आज समाज मे विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में नए अविष्कार करना बहुत आवश्यक है।
आज कल हम विज्ञान और तकनीकी के जीवन मे रह रहे है जहा हम आधुनिक समय की तकनीकियों पर बहुत अधिक निर्भर है जिससे ये तो स्पष्ट है कि विज्ञानं ने लोगो के जीवन को बड़े स्तर पर प्रभावित किया है, जैसे कि विज्ञानं ने बैलगाड़ी युग को समाप्त करके मोटर चलित वाहनों का अविष्कार किया और सभी के जीवन को सरल और तेज बना दिआ। इसी तरह हमारे जीवन मे भी हमने जितने सुधर देखे है वो सभी विज्ञान और तकनीकी के कारन ही संभव हो सका है। अर्थव्यवस्था के क्षेत्र मे भी बहुत सुधर हुआ है जैसे कि गाँव अब कस्बों के रुप में और कस्बें शहरों के रुप में विकसित हो रहे हैं।
एक तरफ से देखे तो इसने लोगों की जीवन-शैली को सकारात्मक रुप से प्रभावित किया है और बहुत सारे व्यक्ति ऐसे भी है जिनके ऊपर विज्ञान और तकनीकी ने बहुत नकारात्मक प्रभाव भी डाला है। अब यह तो लोगो के ऊपर ही निर्भर करता है की वो विज्ञान और तकनीकी का किस तरह फायदा उठाते है या उन्हें हानि पहुंचती है।
आजकल के आधुनिक जीवन मे विज्ञान का कद बहुत बढ़ गया है। विश्व भर मे विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र मे कई देश निरंतर विकास कर रहे है, जिस वजह से यह उन देशो के लिए भी आवश्यक बन जाता है कि वह देश भी अपने विकास, प्रगति, सुरक्षा के लिहाज से विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र को विकसित करे। भारत के कुछ प्रसिद्ध वैज्ञानिक – सर जे.सी. बोस, श्रीनिवास रामानुजन, परमाणु ऊर्जा के जनक डॉ. हर गोबिंद सिंह खुराना, एस.एन. बोस, सी.वी. रमन, डॉ. होमी जे. भाभा, विक्रम साराभाई जिन्होंने अपने विभिन्न क्षेत्रों मे वैज्ञानिक शोध के माध्यम से तकनीकी उन्नति को संभव बना दिया और भारत को पूरे विश्व मे सम्मान दिलाया।
Science and Technology Essay In Hindi 500 Words
विज्ञान का शाब्दिक अर्थ होता है – विशेष ज्ञान। मनुष्य प्राचीन काल से ही नए-नए आविष्कार करके, विकास की सीढ़ियाँ तय करता आ रहा है। आज हम जिस युग में जी रहे हैं वह विज्ञान का युग है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विज्ञान की उपलब्धियों के प्रभाव को देखा जा सकता है। विज्ञान के विभिन्न आविष्कारों ने मनुष्य जीवन को सुख-सुविधामय बना दिया है।
आज संसार के सभी देशों में औद्योगीकरण के क्षेत्र में आगे बढ़ने की होड़ मची हुई है। विविध वैज्ञानिक खोजों और तकनीकी आविष्कारों के सहारे के बिना इस होड़ में विजय नहीं पाई जा सकती। जीवन का ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जहां विज्ञान न पहुँचा हो – भोजन, वस्त्र, मकान, दुकान यहाँ तक कि आसमान सब में विज्ञान का ही बोलबाला है। भोजन बनाने के उपकरण, सिंथेटिक वस्त्र, भवननिर्माण में अभियांत्रिकी, व्यावसायिक कैलकुलेटर, कंप्यूटर तथा अंतरिक्ष में उपग्रह सभी विज्ञान की ही देन हैं। आज मनुष्य घर बैठे ही देश-विदेश में घटित घटनाएं देख सकता है, रेडियो द्वारा खबरें, संगीत सुन सकता है, विद्युत् के आविष्कार से अंधकार को प्रकाश में बदल सकता है और अपने घर को वातानुकूलित बना सकता है। आज ऐसा लगता है कि अगर वैज्ञानिक आविष्कारों को मनुष्य के जीवन से हटा दिया जाए तो मनुष्य का जीवन एकदम शून्य हो जाएगा।
चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भी मनुष्य ने अत्याधिक प्रगति की है। आज मनुष्य ने विज्ञान की सहायता से चेचक, टी-बी आदि भयंकार रोगों को जड़ से ही समाप्त कर दिया है तथा हृदय एवं मस्तिष्क के ऑपरेशन भी संभव बना दिए हैं। कैंसर जैसा भयंकर रोग अब इतना असाध्य नहीं रहा है। आज विज्ञान ने अंधो की आंखें दी हैं, बहरों को कान। यहाँ तक कि प्लास्टिक सर्जरी द्वारा सभी अंगो का सुन्दर रूप प्रदान किया जा रहा है।
यह तो सभी स्वीकार करते हैं कि विज्ञान ने मनुष्य को बहुत अधिक सुख सुविधाएं प्रदान की हैं। प्राचीनकाल में लम्बी दूरियाँ तय करने में मनुष्य को वर्षो लग जाते थे, अनेक कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ता था। लेकिन आज मोटरकार, रेलगाड़ी और वायुयान की सहायता से हजारों मील की दूरियाँ कुछ ही घंटों में तय कर ली जाती हैं। जलयान द्वारा बड़े से बड़े समुद्र को पार करके किसी भी देश में पहुँचा जा सकता है। इन वैज्ञानिक साधनों ने विश्व के देशों को बहुत पास ला दिया है। दूरी की दृष्टि से आज अमरीका, चीन, जापान, रूस तथा यूरोप के सभी देश वैसे ही हैं, जैसे कि दिल्ली, मुंबई और कोलकाता।
टेलीफोन का आविष्कार तो मनुष्य के लिए वरदान सिद्ध हुआ है। हजारों मील दूर बैठे हुए मनुष्य से हम टेलीफोन से बातचीत कर सकते हैं। इतना ही नहीं, अब टेलीफोन पर बात करने वाले एक-दूसरे को देख भी सकते हैं। फैक्स, ईमेल, नेट के आविष्कारों ने तो संप्रेषण के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिए हैं।
आज मनुष्य ने विज्ञान की सहायता से संपूर्ण विश्व को अपनी मुट्ठी में कर लिया है पर उसकी इसी मुट्ठी से बहुत कुछ रेत की तरह फिसलता जा रहा है, इसलिए विज्ञान वरदान ही न रहकर किसी न किसी मायने में अभिशाप भी बन गया है। इसका कारण यह है कि एक ओर मनुष्य जहाँ विज्ञान का उपयोग अपने हित में कर रहा है, वहीं दूसरी ओर भंयकर अस्त्र-शस्त्रों द्वारा मनुष्य की सभ्यता, संस्कृति और उसकी अब तक अर्जित समस्त पूँजी को भस्मीभूत कर देने की तैयारी भी कर रहा है। वैज्ञानिकों ने ऐसे अणुबमों का आविष्कार किया है कि दुर्भाग्यवश यदि कभी उनका विस्फोट हुआ तो देश के देश काल के गाल में चले जाएंगे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमरीका ने जापान पर परमाणु बमों का प्रयोग किया था, जिसके दुष्परिणाम आज भी वहाँ के लोग भोग रहे हैं।
अत: विज्ञान के संहारक अस्त्र-शस्त्रों ने उसे हमारे लिए अभिशाप बना दिया है। आज इतने घातक हथियारों का निर्माण हो चुका है और इतने संहारक रसायनों का पता लगाया जा चुका है कि सारा संसार मिनटों में नष्ट किया जा सकता है। विज्ञान को अभिशाप से बचाने के लिए विश्व व्यवस्था में परिवर्तन करना होगा। नई व्यवस्था में हथियारों की होड़ समाप्त होगी और तभी विज्ञान अभिशाप कहलाने के कलंक से बच सकेगा और मानवता के लिए कल्याणकारी सिद्ध हो सकेगा। यदि आज मनुष्य विज्ञान के बढ़ते चरणों को सही दिशा में नहीं ले जाता तो विज्ञान विश्व को मिनटों में तहस-नहस कर देगा।
Science and Technology Essay In Hindi 800 Words
विज्ञान और वैज्ञानिक आविष्कारों ने हमारे जगत और जीवन की काया ही पलट कर रख दी है। आज का युग विज्ञान का युग है। चारों और वैज्ञानिक विकास, खोज और अन्वेषणों की धूम है। सब तरफ “जय विज्ञान” का नारा गूंजता सुनाई पड़ रहा है। संसार का कोई देश, प्रांत अथवा कोना ऐसा नहीं है जहां विज्ञान ने अपने चरण-चिन्हों की छाप न छोड़ी हो।
विज्ञान के अनेक वरदान हैं। इनके कारण जीवन बहुत सुविधाजनक, सुखमय, गतिशील और अधिक उपयोगी हो गया है। मानव अब समय, स्थान और अनावश्यक श्रम तथा बेगार से बहुत हद तक मुक्त हो गया है। अब इसके पास फुर्सत का लम्बा समय है जिसका प्रयोग वह अपने मनोरंजन और अपने शौक को पूरा करने में करता है। दूरियां सिमट गई हैं। सारा संसार एक विश्व ग्राम में बदल गया है। इससे परस्पर निर्भरता, सहयोग तथा संगठन बढ़ा है। वायुयान ऐसे हैं कि ध्वनि की गति से भी तेज उड़ सकते हैं। रेलगाड़ियां ऐसी कि एक घंटे में 500 किलोमीटर की दूरी तय कर लें। कार, स्कूटर, बसें, मोटर – साइकिल जैसे वाहन अब एक सामान्य बात हैं।
इसी प्रकार चिकित्सा के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व क्रांति देखी जा सकती है। हृदय तथा दूसरे महत्त्वपूर्ण अंगों का रोपण अब एक सच्चाई बन गया है। चेचक जैसी महामारी का अब नाम भी नहीं रहा। अनेक महामारियों पर विजय पा ली गई है। पहले जो कई रोग असाध्य और मृत्युदाई थे, आज वैसे नहीं रहे हैं। उनका सरलता से उपचार किया जा सकता है। परिणामत: मृत्यु दर घटी है, और उम्र बढ़ी है और स्वास्थ्य में आशातीत सुधार हुआ है।
दैनिक जीवन में भी वैज्ञानिक आविष्कारों ने एक सुखद क्रांति ला दी है। टी- वी, सिनेमा, विद्युत् शक्ति व ऊर्जा और इनसे चलने वाले विभिन्न उपकरणों ने घर-गृहस्थी को बहुत सुविधाजनक बना दिया है। बिजली ने रात को दिन में बदल दिया है। इसके द्वारा फ्रिज, एयरकंडीशनर, वाशिंग मशीन, मिक्सर ग्राइंडर, माइक्रोवेव ओवन आदि का उपयोग एक सामान्य बात हो गई है। प्राकृतिक गैस के प्रयोग से अब खाना बनाना बहुत सहज व सरल हो गया है। अब न चूल्हा फेंकने की जरूरत और न कोयले जलाने की। अब न उसे शीत के प्रकोप का डर है और न गर्मी की लू-लपट का भय। इस तरह विज्ञान ने हमारी सुख समृद्धि को जिस तरह फैलाया है और उस में वृद्धि की है, वह बहुत सुखद व प्रशंसनीय है। मानव के सशक्तिकरण में विज्ञान की अद्भुत भूमिका रही है।
हमारे देश भारत में ‘‘श्वेत” और ‘‘हरित क्रांतियां” भी विज्ञान का चमत्कार ही हैं। अब पर्याप्त मात्रा में और उचित मूल्य पर अनाज, दूध, दुग्धउत्पाद, फल, सब्जियां आदि उपलब्ध हैं। एक समय देश में आये दिन अकाल की स्थिति रहती थी और बाहर से अनाज आयात करना पड़ता था। आज हम चावल, गेहूँ, चीनी आदि दूसरे देशों को निर्यात कर रहे हैं। हमारे भंडार इन वस्तुओं से भरपूर हैं और अकाल व भुखमरी का प्रश्न ही नहीं उठता। आज हमारे किसानों को उन्नत उर्वरक, बीज, सिंचाई के साधन और यंत्र उपलब्ध हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में भी विज्ञान ने हमें सराहनीय सहयोग दिया है। आज साक्षरों का प्रतिशत निरंतर वृद्धि पर है। नये-नये स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय तथा प्रशिक्षण केन्द्र, इंजीनियरिंग कॉलेज आदि का विस्तार हो रहा है। कृत्रिम उपग्रहों, दूरदर्शन, रेडियो, पत्राचार आदि आधुनिक माध्यमों से शिक्षा गांव-गांव पहुंच रही है। अब विद्यालय लोगों के द्वार तक पहुंच रहे हैं। मुक्त विद्यालयों, रात्रि-पाठशालाओं और प्रौढशिक्षा आंदोलन ने इस क्षेत्र में भी क्रांति ला दी है। वह दिन दूर नहीं जब हम शत प्रतिशत साक्षरता का दम भर सकेंगे।
विज्ञान के इतने लाभ व वरदान हैं कि उनकी गिनती सरल नहीं लगती। लेकिन इस का एक दूसरा पक्ष भी है। जहां विज्ञान ने हमें इतने वरदान दिये हैं, वहीं कई अभिशाप भी। वैज्ञानिक प्रगति ने जीवन को निरा भौतिकवादी, कृत्रिम और मशीनी बना दिया है। जीवन में स्वार्थ व संकीर्णता बढ़ रहे हैं तथा संयम, त्याग, करुणा व परहित जैसे मानव मूल्यों का ह्रास हो रहा है। भौतिक सुखों और सुविधाओं की दौड़ में आज का मानव सच्चे सुख शांति, संतोष और आनंद से कोसों दूर चला गया है। जीवन में सुविधा और आराम है पर सुख नहीं। आज वह एड्स, कैंसर और कई अन्य जानलेवा बीमारियों से ग्रस्त है। तनाव, उच्च या निम्न रक्तचाप और मानसिक दबावों से वह अभिशप्त है। मशीनों ने जीवन को पंगु बना दया है।
आणविक व परमाणु शस्त्रों के विकास और उत्पादन ने विश्व को विनाश के कगार पर ला खड़ा किया है। आज हमारे पास जो अस्त्र-शस्त्र हैं उनकी मारक व विध्वंसक क्षमता बेजोड़ है। इनके उपयोग से सारे विश्व को अनेक बार तहस-नहस किया जा सकता है। अब अगर तीसरा विश्वयुद्ध हो जाए तो मानव का अस्तित्व ही समाप्त हो सकता है। हीरोशिमा व नागासाकी की याद ही दिल दहला देता है।
अत: यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि विज्ञान वरदान है या अभिशाप। यह एक विवाद का विषय है। इस विषय पर चर्चाएं और वाद-विवाद होते हैं, आपस में विचारों का आदान-प्रदान होता है और उत्तर पाने के प्रयत्न। वस्तुतः विज्ञान तो एक शुद्ध और विशेष ज्ञान का नाम है। विज्ञान अपने आप में न वरदान है और न अभिशाप। यह तो उपयोग और व्यवहार की वस्तु है। अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप इसका कैसे प्रयोग करते हैं।
Science and Technology Essay In Hindi 1000 Words
रूपरेखा : विज्ञान का अर्थ और महत्त्व, आधुनिक युग विज्ञान का युग, मानव की मूलभूत आवश्यकताए और विज्ञान द्वारा उनकी पूर्ति, विज्ञान का औद्योगिक विकास में योगदान, विज्ञान और यातायात, विज्ञान और मनोरंजन, विज्ञान का दुरुपयोग, उपसंहार।
विज्ञान का अर्थ है – विशेष ज्ञान। प्रकृति ने मनुष्य को बृदधि देकर अन्य पशुओं से भिनन बनाया है। उस बुदधि का प्रयोग कर वह नित्य नए आविष्कार करता है और विकास के पथ पर निरंतर आगे बढ़ता जाता है। किसी देश की वैज्ञानिक उपलब्धियाँ उसकी प्रगति का मानदंड बन गई है। यही कारण है कि आज के युग को विज्ञान का युग कहते हैं। मनुष्य के जीवन के प्रत्यक क्षेत्र में विज्ञान का प्रभाव है। सुबह जागने से लेकर रात को सोने तक हम किसी-न-किसी वैज्ञानिक सुविधा का लाभ उठाते हैं।
यों तो प्राचीन काल से ही विज्ञान का संबंध मानव जीवन से रहा है, किंतु आधुनिक युग में विज्ञान की प्रगति देखकर दाँतों तले उँगली दबानी पड़ती है। यातायात के तीव्रगामी साधनों ने विश्व को छोटा कर दिया है। संचार के साधनों में ऐसी खोजें हुई हैं जिनकी कल्पना करना भी कठिन था। हम घर बैठे न केवल किसी से तुरंत बातें कर सकते हैं बल्कि उसका चित्र भी देख सकते हैं। इंटरनेट, ई-मेल आदि का अपना ही आनंद है।
आज हर ओर विज्ञान का बोलबाला है। मनोरंजन का क्षेत्र भी उससे अछूता नहीं रहा। रेडियो-टेलीविज़न अब पिछले ज़माने की वस्तुएँ बनती जा रही हैं। वीडियो, कंप्यूटर ने मनोरंजन के नए-नए तरीके दिए हैं। सूचना के क्षेत्र में क्रांति हो रही है। संचार उपग्रहों के माध्यम से विश्व का कोई भी कोना कैमरे की आँख के लिए अदृश्य नहीं है।
जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं – भोजन, वस्त्र, आवास, बिजली, पानी आदि की पूर्ति के मूल में विज्ञान का बहुत बड़ा हाथ है। कृषि उत्पादन-वृद्धि में विभिन्न प्रकार के औज़ार, खाद उर्वरक और बीजों के नए-नए रूप विज्ञान के कारण ही संभव हो सके हैं। सिंचाई के साधनों-नहर, ट्यूबवेल, पंपिग सेट आदि विज्ञान की ही देन हैं। हरित क्रांति भी विज्ञान के कारण ही संभव हो सकी है, जिसके परिणामस्वरूप आज बंजर धरती भी हरी-भरी होकर लहलहाने लगी है। वैज्ञानिक साधनों के प्रयोग से हमारा देश अन्न की दृष्टि से न केवल आत्मनिर्भर हो गया है, अपित चावल, गेहूं आदि का निर्यात भी करने लगा है।
औद्योगिक विकास का आधार भी विज्ञान ही है। हज़ारों श्रमिकों का कार्य अब मशीने सरलता से और बहुत कम समय में पूरा कर देती हैं। सूती, ऊनी वस्त्रों के साथ टेरीलीन, टैरीकॉट, टेरीवूल आदि विविध प्रकार के अधिक टिकाऊ और आकर्षक वस्त्रों का उत्पादन विज्ञान के कारण ही संभव हो सका है।
विज्ञान की सहायता से ही गगनचुंबी भवनों, बाँधों, पुलों आदि का निर्माण हो रहा है। बिजली, जो हमारी घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ सुख-सुविधाओं की अनेक वस्तुएँ प्रदान कर रही है, विज्ञान की ही देन है। आज बिजली की सहायता से ही हमारे असंख्य कलकारखाने चल रहे हैं और दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो रही है।
विज्ञान की सहायता से आज जन साधारण को भी चिकित्सा की सभी सुविधाएँ प्राप्त हो सकी हैं। विगत 50 वर्षों में ही चिकित्सा की इस सुविधा से हमारे देश की मृत्यु दर घट गई है और औसत आयु 26-27 से बढ़कर 64-65 वर्ष की हो गई है।
निस्संदेह मानव-जीवन को नीरोग एवं सुखी बनाने में विज्ञान का महान योगदान है। असाध्य समझे जाने वाले रोग भी अब साध्य होते जा रहे हैं। मनुष्य के हृदय, फेफड़े, मस्तिष्क जैसे कोमल अंगों के भयानक रोगों का उपचार बड़ी सरलता से हो रहा है। बीमारियों का पता लगाने के लिए एक्स-रे, कैन-स्कैनर, बॉडी स्कैनर जैसी सूक्ष्म एवं शक्तिशाली मशीनों का आविष्कार हो चुका है। आज तपेदिक जैसी भयंकर बीमारी पर भी विज्ञान ने विजय प्राप्त कर ली है।
यह विज्ञान का चमत्कार ही है कि प्राचीन काल में जो सुख-सुविधाएँ राजा-महाराजाओं के लिए भी कल्पना की वस्तुएँ थीं वे आज सामान्य मानव के लिए सहज सुलभ हैं।
विज्ञान और मनुष्य का संबंध केवल उपकरणों, आविष्कारों तक ही सीमित नहीं है अपितु विज्ञान ने मनुष्य की विचारधारा भी बदली है। आज मनुष्य में अपने विश्वासों, रीतियों, मान्यताओं को वैज्ञानिक तर्क की कसौटी पर कसने की प्रवृत्ति बढ़ी है। इससे मनुष्य अंधविश्वासों और कुरीतियों को त्याग सका है। उसके रहने और सोचने के ढंग में बदलाव आया है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विज्ञान और मनुष्य में अटूट संबंध है। विज्ञान की हर खोज मानव समाज के लिए होती है और उस खोज के पीछे मनुष्य की ही बुद्धि होती है। दोनों एक-दूसरे पर आश्रित हैं।
यद्यपि मानव जीवन के भौतिक उत्कर्ष, सुख-सुविधा के साधनों के रूप में विज्ञान का महान योगदान है तथापि वैज्ञानिक आविष्कारों के दुरुपयोग से उसका भावी जीवन खतरे में पड़ता जा रहा है। एक से बढ़कर एक घातक हथियारों-भयानक परमाणु अस्त्रों के निर्माण से हर समय महाविनाश की आशंका बनी रहती है। विज्ञान का यह विध्वंसक रूप समस्त मानव जाति के लिए संहारकारी सिद्ध हो रहा है। अतः विज्ञान के निर्माणकारी रूप पर ही हमें बल देना होगा और संपूर्ण मानव जाति को एक होकर उसके संहारकारी रूप का परित्याग करना पड़ेगा। इस संदर्भ में ‘दिनकर’ ने उचित ही लिखा है –
सावधान मनुष्य, यदि विज्ञान है तलवार ।
तो उसे दे फेंक, तजकर मोह-स्मृति के पार ।।
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