Essay on Special Economic Zone in Hindi (SEZ) सेज पर निबंध
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Essay on Special Economic Zone in Hindi (SEZ)
भारत में ऐसा भी कानून बनाया गया है, जिससे पैसों का लालच देकर कभी आदिवासियों की उपजाऊ जमीन को हड़पने वाले धूर्त लोग भी अपना गलत कदम वापस ले लिए। और यह कानून आज भी अपने दम पर खड़ा है जो आदिवासियों को उनकी अपनी जमीन से बेदखल होने से बचाता आ रहा है। इस कानून के अनुसार आदिवासियों को बेची जमीनों को कोई गैर आदिवासी खरीद नहीं सकते। आदिवासियों कि अपनी जमीनों से बेदखल होने का समय ऐसा था कि कुछ ही रूपयों के लिए गरीब आदिवासी अपनी महंगी जमीन बेचने लगे थे। कुछ धृतं लोग उन्हें नशा सप्लाई करके उनकी जमीन खरीदने लगे थे। यह बात जब सरकार की नजर में आई तव सरकार ने नया कानून बनाकर उन्हें अपनी जमीन बेचने से रोका था। आज वही हालत किसानों की है। औद्योगिक विकास के नाम पर किसानों से जमीन उनकी हथियाई जा रहा है, और इसका सबसे बड़ा बहाना तथा माध्यम है। सेज का निर्माण ‘सेज’ अर्थात् ‘स्पेशल इकोनामिक जोन’ यानी विशेष आर्थिक क्षेत्र इस विशेष आर्थिक क्षेत्र का निर्माण करके खुद को अंतराष्ट्रीय बाजार में एक बड़ा निर्यातक बनाने का सपना भारत ने देखा था। लेकिन क्या लोकतंत्र की नींव पर खड़ा रहा भारत अपनी गरीब किसानों को उपजाऊ जमीन को भू-माफियाओं के द्वारा हड़पने की इजाजत दे पायेगा?
भू-माफियाओं का मकसद है, जमीन की बढ़ती कीमतों से अपने को मालामाल करना। यह हमारा दुर्भाग्य है कि भू-माफिया को दोआब के तीन राज्यों की सरकारें आमंत्रित कर रही हैं। और दोआब की उपजाऊ जमीन को किसानों से खरीदकर उनको बाजार से भी अधिक कीमत पर दे रही है। यहाँ हम हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पंजाब का उदाहरण ले सकते हैं। हरियाणा के गुड़गाँव और झज्जर जिलों को राज्य सरकार ने सेज बनाने के लिए मुकेश अंबानी को सौंप देने का फैसला किया है। इतना ही नहीं, हरियाणा में और भी सेज निर्माण के लिए केंद्र की सहमति मिल चुकी है। यानी आधा नहीं बल्कि पूरे का पूरा हरियाणा सेज के नाम पर बड़े-बड़े कार्पोरेट क्षेत्र की भेंट चढ़ने वाला है। जिस पर विकास की दुहाई दी जा रही है। लेकिन क्या यह सब सच में विकास के लिए हो रहा है या हमारे देश के लिए विनाश का रास्ता तैयार किया जा रहा है?
गंगा-यमुना का यह दोआब दुनिया के सबसे अधिक उर्वर इलाकों में से है, जो पूरे भारत के लोगों का पेट भर सकता है। इसके रहते कभी भी भारत को दूसरे देशों के सामने अनाज के लिए हाथ फैलाना नहीं पड़ता है। आज इस इलाके पर भू-माफिया की नजर हैं। यहाँ की उपजाऊ जमीन को वे राज्य तथा केन्द्र सरकारों की मदद से अपने कब्जे में कर रहे हैं। इससे यह तो साफ दिखाई पड़ता है कि अनाज उत्पादन में जो आत्मनिर्भरता थी, वह जरूर समाप्त हो जाएगी। साथ ही देश की संप्रभुता भी क्षीण हो जाएगी। इसी तरह सेज के नाम पर उपजाऊ जमीन को कार्पोरेट क्षेत्र के सपुर्द करने से देश को नुकसान तो होगा ही, साथ ही यह इन इलाकों के किसानों को अपने ही घर में बेगाना बना देगा, क्योंकि उनके पास अपना कहने के लिए कुछ बचेगा ही नहीं। तो इस संदर्भ में हमारे मन में सवाल उठना जायज ही है कि सेज बनाना ही है तो फिर उपजाऊ जमीन को ही क्यों निशाना बनाया जा रहा है?
उस जमीन पर भी सेज बनाए जा सकते हैं जहां खेती नहीं होती। लेकिन जमीन का ऐसा चुनाव इसीलिए लिया गया है कि ये इलाके राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के निकट हैं और इसी वजह से जमीन की कीमत भी ज्यादा है। क्या यही असलियत है कि औद्योगिक विकास सिर्फ एक बहाना है और असली मकसद जमीने हथियाकर उससे कमाई करना है? इस समस्या की गम्भीरता पर सरकार में बैठे लोगों को विचार करना चाहिए, समझना चाहिए। उपजाऊ जमीन के ऊपर एक ऐसी नीति बनानी चाहिए, जिससे किसानों की जमीन किसान ही खरीद सकें। सभी किसानों को उनकी जमीन से बेदखल होने से बचाया जा सकेगा। और साथ ही भारत की अनाज की सुरक्षा पर से सेज के खतरे को नियंत्रित किया जा सकेगा।
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