Spring Season in Hindi – वसंत ऋतु पर निबंध

Hello guys today we are going to discuss about Spring Season in Hindi. What is spring season? We have written an essay on Basant Ritu in Hindi. Now you can take an example to write spring season in Hindi in a better way. Spring Season in Hindi is asked in most exams nowadays starting from 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Essay on Basant Ritu in Hindi or Spring Season in Hindi. वसंत ऋतु पर निबंध।

Spring Season in Hindi

hindiinhindi Spring Season in Hindi

Essay on Spring Season in Hindi 700 Words

भूमिका

संसार में ऐसा कोई भी देश नहीं जहाँ वर्ष में छह ऋतुएं आती हैं और अपने-अपने समय पर आकर अपना रंग दिखाती हैं और प्रकृति का श्रृंगार करती हैं। भारत में हर ऋतु अपने समय पर आकर सबके मन में नई उमंग और काम करने का उत्साह भरता है। इसलिए भारत की भूमि को स्वर्ग के समान सुंदर माना जाता है।

‘रंग-रंग की ऋतुएं आँगन में आती,
मेरे भारत को रंगों में रंग जाती।’

हेमंत, शिशिर, बसंत, ग्रीष्म, वर्षा और शरद। इनमें से बसंत ऋतु फाल्गुन-चैत्र मास/फरवरी-मार्च महीने में आती है। इन दिनों में न अधिक गर्मी पड़ती है और न अधिक सर्दी । दिन-रात लगभग बराबर होते हैं। इससे पहले शरद ऋतु में कड़ाके की सर्दी पड़ती है और इसको धरती की हरियाली सहन नहीं कर पाती। हेमंत ऋतु में फूल मुरझा जाते हैं, पत्ते पीले पड़ जाते हैं। पतझड़ होता है तथा पत्ते झड़ जाते हैं। इसके बाद ऋतुराज बसंत का आगमन होता है।

आगमन

बसंत, जिसमें संपूर्ण प्रकृति सौंदर्यमयी हो उठती है, पेड़ों पर नए-नए पत्ते निकल आते हैं, फूल खिल उठते हैं। इस ऋतु में सरसों के फूल पूरे यौवन पर होते हैं। आम के पेड़ों पर सुनहरा बौर आ जाता है तथा कोयल की कूक सुनाई देने लगती है। उद्यानों में रंग बिरंगे फूल खिलकर अपनी सुंदरता बिखेरते हैं। भंवरे और रंग-बिरंगी तितलियाँ उनके आस-पास मँडराने लगती हैं। सरसों के फूलों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानों पृथ्वी ने पीली चादर ओढ़ ली हो। अनार, कचनार, ढाक आदि के फूलों से प्रकृति का सौंदर्य निखर उठता है।

इस समय चारों और हरियाली छा जाती है। बसंत ऋतु सभी ऋतुओ में से उत्तम एवं प्रिय ऋतु मानी जाती है। इसके आगमन पर चारों ओर प्रसनन्ता छा जाती है। इसलिए इस ऋतु को ऋतुराज, बसंत, मधुऋत फूलों का त्योहार और कुसुमाकर भी कहते हैं।

‘महक रही है डाली-डाली, धरती की है छटा निराली.
कोयल का भी मन हर्षाया, आया सखी बसंत आया।’

बसंत पंचमी के त्योहार का इतिहास

बसंत पंचमी का पौराणिक संबंध त्रेता युग के प्रभु राम से है जब प्रभु राम शबरी के पास गए थे, तब बसंत पंचमी का ही दिन था।

इस दिन वीर हकीकत राय ने हिंदू धर्म की बलिवेदी पर अपने प्राणों की बलि दी थी। यह पावन दिन शहीदी मेले के रूप में मनाया जाता है। हकीकत राय को नवाब ने इस्लाम धारण करके मुसलमान बन जाने को कहा लेकिन हकीकत राय ने मानने से इंकार कर दिया। फलस्वरूप 1798 को उन्हें फाँसी पर लटका दिया गया। |

महाराजा रणजीत सिंह भी बसंत पंचमी के पर्व पर दरबार सजाया करते थे। तभी तो बसंत पंचमी का त्योहार हर धर्म के लोगों में बड़ी उत्सुकता और उल्लास से मनाया जाता है।

मनाने का ढंग

यह त्योहार समस्त भारत में हर्ष एवं उल्लास से मनाया जाता है। इस दिन लोग पीले वस्त्र धारण करते हैं, सरस्वती पूजन करते तथा पीला हलुआ चावल बाँटते और खाते हैं। स्थान-स्थान पर बसंत मेलों का आयोजन किया जाता है। बसंत ऋतु में कवियों की भावना-शक्ति भी बढ़ने लगती है। इसलिए इन दिनों विशेष कवि सम्मेलन करवाये जाते हैं।

सरस्वती पूजा
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि,
सुनहु सरस्वती मातु ।
राम सागर अधम को
आश्रय तू ही देदातु ||

पंजाब में शहर पटियाला, लुधियाना, जालन्धर एवं अमृतसर में बसंत पंचमी के त्योहार की निराली छटा देखने को मिलती है। इस दिन शहरों और गाँव में पतंगबाजी की जाती है। लाउडस्पीकर इत्यादि लगाकर लोग रंग-बिरंगी पतंगें उड़ाते हैं। एक-दूसरे की पतंग काटने की होड़ में जो उत्साह होता है वह देखते ही बनता है। आसमान में उड़ते पतंग अद्भुत दृश्य पेश करते हैं।

प्रकृति में बदलाव

बसंत पंचमी मूलरूप से प्रकृति का उत्सव है। इसे आनंद का पर्व भी कहा जाता है। इस दिन से धार्मिक, प्राकृतिक तथा सामाजिक जीवन के कामों और आध्यात्मिक दृष्टि से साधना आरंभ करने का भी पर्व है। इस ऋतु में मनुष्य ही नहीं, पशु-पक्षी भी इस ऋतु में खुशी से उछलते, कूदते और नाचते हैं। सभी प्राणियों, जीवजंतुओं, पेड़-पौधों में नवजीवन का संचार हो जाता है।

उपसंहार

बसंत ऋतु को सबसे उत्तम ऋतु माना गया है क्योंकि इस ऋतु में न अधिक सर्दी होती है न अधिक गर्मी। बसंत ऋतु सौन्दर्य, स्वास्थ्य एवं उल्लास की ऋतु है इसलिए इसे ऋतुराज कहना भी उचित है।

बसंत को लेकर प्रसिद्ध कवि ने खूब कहा है :
‘आई बसंत, पाला उड्त।’

Essay on Spring Season in Hindi 800 Words

प्रकृति के यौवन को उभार कर सबके सामने प्रकट कर देने वाली वसंत ऋतु को ‘ऋतुराज’ कहना उपयुक्त ही है। प्रकृति का उभरा रोम-रोम, चहचहाते पक्षी वृन्द, कुहकती कोयल और मादक सुगंध से परिपूर्ण होकर यहाँ-वहाँ डोलता फिरता आवारा पवन, स्वयं ही ‘ऋतुराज’ की सूचना कोने-कोने तक दे दिया करते हैं; ताकि छोटे-बड़े आवाल वृद्ध, सब उसका स्वागत करने के लिए प्रसन्नता से विह्वल-व्याकुल हो उठे।

वसंत का आगमन प्रकृति के लिए एक नए विकास का आशीर्वाद लेकर आता है। यह जड़, चेतन प्रकृति के प्रत्येक रूप, पदार्थ और प्राणी में जीवन की नई उमंग भर देता है। सभी को किसी नये अनुभव से कुछ गुनगुनाने और गा उठने के लिए बाध्य कर देता है। सच तो यह है कि सभी गुनगुनाने एवं मुस्करा भी उठते हैं। वसंत का आगमन उस समय होता है, जब अत्यधिक शीत की ठिठुरन प्रकृति के कण-कण को, रोम-रोम को ठिठुरा कर कँपकँपा देती है। उस कँपकँपी के परिणामस्वरूप पेड़-पौधों के पत्ते पीले पड़ कर झड़ जाते हैं, आवारा पवन उन झड़े पत्तों को रूखा-सूखा बना कर, उड़ाता हुआ कहीं दूर जा कर फेंक आया करता है। अर्थात् ऋतुक्रम से जब पतझड़ अथवा शिशिर का प्रकोप प्रकृति को बिल्कुल निर्वस्त्र करके रख देता है, तब उसके लिए विभिन्न प्रकार के रंग-बिरंगे फूल-पत्तों के वस्त्र लेकर, मस्ती से झूमता और गुनगुनाता हुआ ऋतुराज वसंत आकर प्रकृति को अपने ही हाथों से संवार देता है। उसके यवन को अचानक गुदगुदा कर खिला देता है। ऐसे प्रकृति के हरे-भरे कोमल अंगों (फूलों) से रस और सुगंध चुरा कर छलिया पवन खुद तो रसिक होकर झूम उठता है; साथ ही उस रसीली खुशबू को दशों दिशाओं में दूर-दूर तक भी फैला देता है। इससे सारी दिशाएँ हरी-भरी, मस्त और रंगीन हो जाती हैं। ऐसा प्रभाव होता है वसंत के आगमन का।

‘आया वसंत, पाला उडन्त’ कहावत के अनसार वसंत ऋतु पाले अर्थात शीत ऋत के अन्त होने की खबर लेकर भी आती है। तब धीरे-धीरे सर्दी का प्रभाव और रंग गुलाबी पड़ कर समाप्त होता जाता है। सर्दियों में शरीर पर लदे रहने वाले वस्त्र एक-एक करके उतरने लगते हैं। शरीर नई स्फूर्ति एवं चेतना का अनुभव करने लगता है। अंग-प्रत्यंग मस्ती-सी छलकाते हुए स्पष्ट होने लगते हैं। ऐसे समय में कहीं दूर अमराइयों के झुण्ड से अचानक पूँज कर, कोयल की कुहुक, रोम-रोम में एक अलक्षित-सा, अश्रव्य-सा संगीत भरने लगती है। इसके साथ ही-साथ युवा मन भी चहक-महक उठता है, मुख में अलक्षित सा राग, पैरों में अलक्षित सी ठुमक भर कर अपने-आप ही एक थिरकन बन जाती हैं। विरह-पीड़ित प्रेमियों के हृदयों की धड़कनें तो दुगुनी हो जाया करती हैं। जैसे भंवरे खिले फूल-कलियों की तरफ खिंचे चल जाते हैं, उसी तरह युवा मन भी रूप-यौवन का पान करने की ललक से भरपूर हो जाता है।

वसंत ऋतु के प्रभाव से सरसों के खेत पीले पुष्पों से लहरा कर, पवन के थपेड़ों से झूम कर सारे वायुमण्डल और वातावरण में एक नए सौन्दर्य का संचार करने लगते हैं। इन फूलों की सुगंध एक नई मस्ती का संदेश देने वाली प्रतीत होती है। प्रकृति के इस अनुपम सौन्दर्य का आनंद लेने के लिए, प्राचीन भारत में वसंत ऋतु की चांदनी रातों में, प्रमुखतया: वसंत ऋत के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि से लेकर पूर्णमासी तक ‘कौमुदी महोत्सव’ राजसी ठाठ-बाट के साथ, राज्य की ओर से की गई व्यवस्था के अंतर्गत मनाया जाता था। इसमें सामंत, राजा, उच्च वर्ग, आम प्रजा जन आदि सभी समान रूप से भाग लिया करते थे। आजकल वसंत ऋत का त्योहार ‘वसंत पंचमी’ के नाम से प्रायः पूरे भारत में मनाया जाता है। इस दिन नवयुवतियाँ पीले वस्त्रों में सज-संवर कर मेला-स्थल पर जाती हैं। घरों में केसरिया रंग के चावल, हल तथा अन्य मिष्ठान्न बनाए और खाए-खिलाए जाते हैं। कुछ लोग वसंत पंचमी के दिन उपवास भी रखते हैं।

वसंत ऋतु के सारे त्योहारों में से होली ही वास्तव में वसंत ऋतु के मस्ती और रंगों को प्रकट करने वाला त्योहार है। होली के दिन कई तरह के रंगों से लिपट कर लोग-बाग वास्तव में वसंत ऋतु के सारे प्राकृतिक रंगो से धुल-मिल जाने का अभिनय करते हैं। वसंत ऋतु में हरी-भरी डालियों पर चहकते रंग-बिरंगे, फूलों और उन फूलों कलियों पर गुनगुना कर मंडराते भंवरे, उड़ती तितलियाँ मन-मस्तिष्क में एक नितांत नया भाव-सौंदर्य एवं संगीत जगा देती हैं। दिशाओं का खुलापन और आकाश में निर्मल वातावरण की सजल उज्वलता, सभी कुछ बड़ा ही आकर्षक एवं मोहक बनकर सामने आता है। यही वजह है कि हर देश और वहाँ की भाषाओं के कवियों ने वसंत ऋतु का अपने काव्यों में भी भरपूर चित्रण किया है। इसे सौन्दर्यसंगीत और यौवन का सजीव स्वरूप कहा गया है।

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