Subhadra Kumari Chauhan in Hindi
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Subhadra Kumari Chauhan in Hindi
स्कूल के दिनों में हमारी मौखिक परीक्षा हुआ करती थी। मुझे हिंदी की परीक्षा में बहुत मज़ा आता था, क्योंकि उसमें हमें पूरी किताब में से अपनी पसंद की एक कविता याद करनी होती थी। वैसे तो सब कोशिश करते थे कि कोई छोटी कविता याद करें ताकि परीक्षा में भूलें नहीं और पूरे अंक मिल सकें, लेकिन मुझे अच्छी तरह याद है कि छठी कक्षा में हमारी हिंदी की किताब में ‘झाँसी की रानी’ शीर्षक से एक कविता थी। वह बहुत लंबी थी, लेकिन मुझे इतनी पसंद थी कि मैंने परीक्षा के लिए उसे ही याद किया था। यह कविता उस समय की थी, जब अंग्रेज़ हमारे देश भारत पर राज करते थे। इसमें बताया गया है कि उन्हें देश से बाहर खदेड़ने में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने कैसे बहादुरी और सूझबूझ से काम लिया। यह कविता सुभद्राकुमारी चौहान ने लिखी थी। वे एक बहुत अच्छी कवयित्री थीं। उनकी इस कविता ने उस समय लोगों को आज़ादी के लिए बहुत प्रेरित किया था।
सुभद्राकुमारी चौहान का जन्म 16 अगस्त, 1904 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद के पास निहालपुर नामक एक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम ठाकुर रामनाथ सिंह था। सुभद्रा पढ़ाई में अव्वल आती थीं, तो खेल-कूद में भी उनका खूब मन लगता था। कविताएँ लिखने का शौक उन्हें बचपन में ही लग गया था। नौ साल की उम्र में उनकी पहली कविता ‘मर्यादा’ नाम की पत्रिका में छपी थी।
उनकी शादी उनकी पसंद से नाटककार लक्ष्मण सिंह से कर दी गई। लक्ष्मण सिंह खुले विचारों के थे और उन्होंने सुभद्रा का हमेशा साथ दिया। पति-पत्नी दोनों पक्के देशभक्त थे। वे आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए।
सुभद्रा ने अपनी कविताओं से लोगों को आजादी की कीमत समझाई और उनके बीच जाकर उन्हें सामाजिक कुरीतियों से आजाद होने के लिए प्रेरित किया। उनकी बातों में कुछ ऐसा जादू था कि सब उनकी बात बहुत ध्यान से सुनते और उसे मानते थे। दस-ग्यारह साल तक उनकी कविताएँ अख़बारों और पत्रिकाओं में छपती रहीं। इसके बाद उनका पहला कविता संग्रह ‘मुकुल’ छपा। उस समय बहुत कम महिलाएँ कविता लिखा करती थीं। उनकी कविताओं की खासियत सरल भाषा और स्पष्ट विचार हैं। इसके बाद उनके तीन कहानी-संग्रह बिखरे मोती, उन्मादिनी और सीधे-सादे चित्र छपे। वे इतनी देशभक्त थीं कि 15 अगस्त, 1947 को भारत के आजाद होने पर अति उत्साहित होकर वे भेड़ाघाट गईं और मजदूरों को कपड़े और मिठाइयाँ बाँटीं। 15 फरवरी, 1948 को एक कार–हादसे में उनकी मृत्यु हो गई।
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