Tatpurush Samas तत्पुरुष समास
|तत्पुरुष समास (Tatpurush Samas) – जिस समास में दूसरा पद (उत्तर पद) प्रधान होता है और समस्तपद बनाते समय दोनों पदो के बीच के कारक-चिह्न (परसर्ग) का लोप होता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। तत्पुरुष समास में दूसरा पद प्रधान होता है। इसमें दूसरा पद कम अर्थ वाला होता है, मतलब की दूसरा पद छोटा होता है। तत्पुरुष समास में उत्तरपद प्रधान होता है तथा पूर्वपद गौण होता है। प्रायः उत्तरपद विशेष्य और पूर्वपद विशेषण होता है। उदाहरणतया ‘रसोई के लिए घर’। यहाँ ‘घर’ विशेष्य है और ‘रसोई के लिए’ विशेषण है।
Tatpurush Samas तत्पुरुष समास
तत्पुरुष का अर्थ ही है ‘उसका पुरुष’ जैसे – सेनापति (सेना का पति) यहाँ ‘सेनापति’ शब्द में दूसरा पद पति (स्वामी ) है अत: वह प्रधान है। इस समास में पहला शब्द दूसरे शब्द पर निर्भर होता है अत: दूसरा शब्द (उत्तर पद ) प्रधान होता है। इस समास में दोनों शब्दों के बीच आने वाले। कारक चिहनों – को ,से (साधन अर्थ में ),के लिए , से (अलग होने अर्थ में ) का केकी में परा का लोप होता है। कारक चिह्नों के अनुसार इस समास के छ: भेद हो जाते हैं। कर्ता कारक व संबोधन कारक को इसमें सम्मिलित नहीं किया जाता।
देश भक्ति ( समस्तपद ), देश भक्ति ( पूर्वपद उत्तरपद ), देश के लिए भक्ति ( समास-विग्रह )
राष्ट्रपिता ( समस्तपद ), राष्ट्र पिता ( पूर्वपद उत्तरपद ), राष्ट्र का पिता ( समास-विग्रह )
वनवास ( समस्तपद ), वन वास ( पूर्वपद उत्तरपद ), वन में वास ( समास-विग्रह )
राहखर्च ( समस्तपद ), राह खर्च ( पूर्वपद उत्तरपद ), रह के लिए खर् ( समास-विग्रह )
समास – प्रक्रिया में बीच की विभक्तियों का लोप तो होता ही है, कभी-कभी बीच में आने वाले अनेक पदों का भी लोप हो जाता है। जैसे-‘दहीबड़ा’ का विग्रह है-‘दही में डूबा हुआ बड़ा’। समास होने पर ‘में डूबा हुआ’ तीनों पद लुप्त हो गए हैं।
तत्पुरुष के भेद – तत्पुरुष समास के निम्नलिखित भेद हैं –
(1) कर्म तत्पुरुष
(2) करण तत्पुरुष
(3) संप्रदान तत्पुरुष
(4) अपादान तत्पुरुष
(5) संबंध तत्पुरुष
(6) अधिकरण तत्पुरुष
तत्पुरुष समास के उपभेद –
(1) नञ् तत्पुरुष
(2) उपपद तत्पुरुष
(3) लुप्तपद तत्पुरुष
(1) कर्म तत्पुरुष समास – ‘को’ चिह्न का लोप करने से यह समास बनता है। जहाँ पूर्वपद में कर्मकारक की विभक्ति का लोप हो, वहाँ ‘कर्म तत्पुरुष’ होता है। जैसे –
समस्तपद और विग्रह
माखनचोर – माखन को चुराने वाला
सम्मानप्राप्त – सम्मान को प्राप्त
परलोकगमन – परलोक को गमन
शरणागत – शरण को आगत
आशातीत – आशा को लाँघकर गया हआ
परलोकगमन – परलोक को गमन
गृहागत – गृह को आया हुआ
यशप्राप्त – यश को प्राप्त
स्वर्गगत – स्वर्ग को गया हुआ
मरणासन्न – मरण को पहुँचा हुआ
ग्रामगत – ग्राम को गया हुआ
ग्रंथकार – ग्रंथ को लिखने वाला
(2) करण तत्पुरुष समास – करण कारक के दो चिह्न होते हैं – ‘से’ और ‘के दवारा’। जब इन चिह्नों का लोप करके समास बनता है तो वह करण तत्पुरुष समास कहलाता है। जहाँ पूर्व पक्ष में करण कारक की विभक्ति का लोप हो, वहाँ ‘करण तत्पुरुष’ होता है। जैसे –
समस्तपद और विग्रह
गुरुदत्त – गुरु द्वारा दत्त
वाल्मीकिरचित – वाल्मीकि दवारा रचित
शोकातूर – शोक से आतुर
कष्टसाध्य – कष्ट से साध्य
वाग्दत्ता – वाणी द्वारा दत्त
दयार्द्र – दया से आर्द्र
शोकाकुल – शोक से आकुल
गुरुदत्त – गुरु द्वारा दत्त
अकालपीड़ित – अकाल से पीड़ित
कष्टसाध्य – कष्ट से साध्य
मनमाना – मन से माना
गुणयुक्त – गुण से युक्त
मनमाना – मन से माना हुआ
शराहत – शर से आहत
मदमस्त – मद से मस्त
रेखांकित – रेखा से अंकित
रोगमुक्त – रोग से मुक्त
भयाकुल – भय से आकुल
ररचित – सूर द्वारा रचित
स्वरचित – स्व द्वारा रचित
मनगढंत – मन से गढ़ा हुआ
भुखमरा – भूख से मरा
हस्तलिखित – हस्त से लिखित
(3) संप्रदान तत्पुरुष समास – इसमें कारक चिह्न – ‘के लिए’ का लोप हो जाता है। जहाँ समास के पूर्व पक्ष में संप्रदान की विभक्ति अर्थात् ‘के लिए’ का लोप होता है, वहाँ संप्रदान तत्पुरुष समास होता है। जैसे –
समस्तपद और विग्रह
देशार्पण – देश के लिए अर्पण
पाठशाला – पाठ के लिए शाला
डाकगाड़ी – डाक के लिए गाड़ी
गौशाला – गौओं के लिए शाला
सत्याग्रह – सत्य के लिए आग्रह
पाठशाला – पाठ के लिए शाला
डाकगाड़ी – डाक के लिए गाड़ी
क्रीडाक्षेत्र – क्रीड़ा के लिए क्षेत्र
बलिपशु – बलि के लिए पशु
मालगोदाम – माल के लिए गोदाम
युद्धक्षेत्र – युद्ध के लिए क्षेत्र
हवनसामग्री – हवन के लिए सामग्री
सत्याग्रह – सत्य के लिए आग्रह
आरामकुर्सी – आराम के लिए कुर्सी
देशभक्ति – देश के लिए भक्ति
देशार्पण – देश के लिए अर्पण
राहखर्च – राह के लिए खर्च
हथकड़ी – हाथ के लिए कड़ी
यज्ञशाला – यज्ञ के लिए शाला
हथघड़ी – हाथ के लिए घड़ी
विद्यालय – विद्या के लिए आलय
रसोईघर – रसोई के लिए घर
(4) अपादान तत्पुरुष समास – अपादान कारक का चिह्न ‘से’ ( अलग होने के अर्थ में , भयभीत होने के अर्थ में ) का लोप हो जाता है। जहाँ समास के पूर्व पक्ष में अपादान की विभक्ति अर्थात् ‘से (विलग)’ का भाव हो, वहाँ अपादान तत्पुरुष समास होता है। जैसे –
समस्तपद और विग्रह
विदयारहित – विदया से रहित
पथभ्रष्ट – पथ से भ्रष्ट
जीवनमुक्त – जीवन से मुक्त
धनहीन – धन से हीन
रोगमुक्त – रोग से मुक्त
बंधनमुक्त – बंधन से मुक्त
गुणहीन – गुणों से हीन
जातिच्युत – जाति से च्युत
देशनिकाला – देश से निकाला
ऋणमुक्त – ऋण से मुक्त
धर्मविमुख – धर्म से विमुख
रोगमुक्त – रोग से मुक्त
भयभीत – भय से भीत
धनहीन – धन से हीन
लक्ष्यभ्रष्ट – लक्ष्य से भ्रष्ट
धर्मभ्रष्ट – धर्म से भ्रष्ट
(5) सम्बन्ध तत्पुरुष समास – सम्बन्ध कारक के चिह्न ‘का’ ‘के’ ‘की’ का लोप होता है। जहाँ समास के पूर्व पक्ष में संबंध तत्परुष की विभक्ति अर्थात् का, के, की का लाप हो, वहाँ संबंध तत्पुरुष समास होता है। जैसे –
समस्तपद और विग्रह
भूदान – भू का दान
राष्ट्रगौरव – राष्ट्र का गौरव
राजसभा – राजा की सभा
जलधारा – जल की धारा
भारतरत्न – भारत का रत्न
पुष्पवर्षा – पुष्पों की वर्षा
राजभक्ति – राजा की भक्ति
जलप्रवाह – जल का प्रवाह
लोकसभा – लोक की सभा
पूँजीपति – पूँजी का पति
विद्याभंडार – विद्या का भंडार
गंगातट – गंगा का तट
रघुकुलमणि – रघुकुल का मणि
गृहस्वामी – गृह का स्वामी
राजनीतिज – राजनीति का ज्ञाता
घुड़दौड़ – घोड़ों की दौड़
राजमाता – राजा की माता
जीवनसाथी – जीवन का साथी
राजसभा – राजा की सभा
दिनचर्या – दिन की चर्या
राजकुमार – राजा का कुमार
लखपति – लाखों का पति
पराधीन – पर के अधीन
रामभक्ति – राम की भक्ति
देशरक्षा – देश की रक्षा
राष्ट्रपतिभवन – राष्ट्रपति का भवन
देशवासी – देश का वासी
राजकुमार – राजा का कुमार
यदुवंश – यदु का वंश
(6) अधिकरण तत्पुरुष समास – अधिकरण कारक के चिह्न ‘में’ और ‘पर’ का लोप होता है। जहाँ अधिकरण कारक की विभक्ति अर्थात् ‘में’, ‘पर’ का लोप होता है, वहाँ ‘अधिकरण तत्पुरुष समास होता है। जैसे –
समस्तपद और विग्रह
देशाटन – देश में अटन
पर्वतारोहण – पर्वत पर आरोहण
जलसमाधि – जल में समाधि
जलज – जल में जन्मा
नीतिकुशल – नीति में कुशल
आपबीती – आप पर बीती
ध्यानमग्न – ध्यान में मग्न
रणकौशल – रण में कौशल
सिरदर्द – सिर में दर्द
लोकप्रिय – लोक में प्रिय
गृहप्रवेश – गृह में प्रवेश
नीतिनिपुण – नीति में निपुण
कानाफूसी – कानों में फुसफुसाहट
पुरुषोत्तम- पुरुषों में उत्तम
डिब्बाबंद – डिब्बे में बंद
शरणागत – शरण में आगत
दानवीर – दान में वीर
ग्रामवास – ग्राम में वास
विद्याप्रवीण – विद्या में प्रवीण
घुड़सवार – घोड़े पर सवार
युद्धवीर – युद्ध में वीर
कुलश्रेष्ठ – कुल में श्रेष्ठ
आत्मविश्वास – आत्म पर विश्वास
तत्पुरुष समास के उपभेद – कर्मधारय समास व दविगु समास के अतिरिक्त तत्पुरुष समास के कुछ अन्य उपभेद भी हैं जो इस प्रकार हैं –
(1) नञ् तत्पुरुष समास – निषेध (नकारात्मक) आदि के अर्थ में पूर्वपद न या अन लगाकर नञ् तत्पुरुष समास बनता है परन्तु अब हिंदी में इन पूर्वपदों को उपसर्ग मान कर समास पदों से अलग उपसर्गों से बनने वाले शब्द मान लिए गए हैं। जिस समस्तपद में पहला पद नकारात्मक (अभावात्मक) हो, उसे नञ् तत्पुरुष कहते हैं। जैसे –
समस्तपद और विग्रह
अजर – न जर
अधीर – न धीर
अनादर – न आदर
अनहोनी – न होनी
अकारण – न कारण
अनदेखी – न देखी
अज्ञान – न ज्ञान
नास्तिक – न आस्तिक
अधीर – न धीर
अस्थिर – न स्थिर
अब्राह्मण – न ब्राह्मण
अमर – न मर
अनर्थ – न अर्थ
अनश्वर – न नश्वर
अनहोनी – न होनी
अधर्म – न धर्म
अनचाही – न चाही
अनादर – न आदर
अनादि – न आदि
अनिच्छा – न इच्छा
अकर्मण्य – न कर्मण्य
अजर – न जर
(2) उपपद तत्पुरुष समास – ऐसा समास जिनका उत्तरपद भाषा में स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त न होकर प्रत्यय के रूप में ही प्रयोग में लाया जाता है ; जैसे –
नभचर , कृतज्ञ , कृतघ्न , जलद , लकड़हारा
(3) लुप्तपद तत्पुरुष समास – जब किसी समास में कोई कारक चिह्न अकेला लुप्त न होकर पूरे पद सहित लुप्त हो और तब उसका सामासिक पद बने तो वह लुप्तपद तत्पुरुष समास कहलाता है ; जैसे –
समस्तपद और विग्रह
दहीबड़ा – दही में डूबा हआ बड़ा
ऊँटगाड़ी – ऊँट से चलने वाली गाड़ी
पवनचक्की – पवन से चलने वाली चक्की
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