Terrorism Essay in Hindi Language (Aatankwad) आतंकवाद पर निबंध
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Essay on Terrorism in Hindi 300 Words
विनाशकारी शक्तियो द्वारा विभिन तरीके से जान-माल का नुक्सान पहुँचाना या भय की स्थिति पैदा करने को आतंकवाद कहते है। विश्व के बहुत सारे देश पहले ही कठिन परिस्तिथियों और चुनौतियों जैसे कि गरीबी, जनसंख्या वृद्धि, निरक्षरता, असमानता आदि का सामना कर रहे है, किन्तु इन सब से खतरनाक है – आतंकवाद। आतंकवाद का कोई क्षेत्र न होने के कारन यह एक अंतरराष्ट्रीय समस्या बन चुकी है। आतंकवाद पूरी मानव जाति को मानसिक तोर से प्रभावित कर रहा है। विकसित हो चुके देशो यूएसए, रुस आदि और विकसित हो रहे देशो, दोनों के लिए आतंकवाद बहुत बड़ी चुनौती है। कुछ चंद लोग अपने राजनीतिक लाभ, धार्मिक या व्यक्तिगत लक्ष्य पाने के लिए भी आतंकवाद का सहारा लेते है, जो दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है।
आतंकवाद का कोई धर्म या जाति नहीं होती, वह अपनी माँगों को मनवाने के लिए गलत तरीके से सरकार के ऊपर दबाव बनाते है, जिसके लिए वह मासूम लोगो पर हमला कर देते है जिनका कोई कसूर नहीं होता। आतंकवादी विमानों का अपहरण करते हैं, लोगों पर गोलियाँ चलाते हैं, बम विस्फोट द्वारा और दूसरी आतंकी गतिविधियों को अंजाम देते हैं। ऐसी ज्यादातर घटनाये सिनेमाघरों, रेलगाड़ियों, भीड़-भाड़ वाले इलाकों में होती है ताकि ज्यादा नुक्सान और दहशत पैदा की जा सके।
आतंकवादी लक्ष्य के साथ वारदात को अंजाम देते है। भारत में पहले ऐसा माना जाता था कि आतंकवादी गतिविधियाँ केवल जम्मू और कश्मीर तक ही सीमित है, पर आज आतंकवाद अपनी जड़े दूसरे क्षेत्रों में भी फैला रहा है। अपने कार्य के अनुसार राजनीतिक और आपराधिक आतंकवाद के दो मुख्य प्रकार हैं। आतंकवाद के जरिये देश में असुरक्षा, भय और संकट की स्थिति पैदा हो जाति है, जो सभी देशो के नागरिको के लिए बहुत खतरनाक है। आतंकवाद बहुत बुरी बीमारी है जो दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है, अब समय आ गया है कि सरकार इसके लिये कठोर कदम उठाये।
Essay on Terrorism in Hindi 700 Words
समग्र विश्व आज बारूद के ढेर पर बैठा हुआ है; और यह बारूद है आतंकवाद की राज से पीडित विश्व मानव-समाज आज अपनी परछाई से भी डरने लगा है, अपने ही कदमों की आहट से चौंकने लगा है। हालांकि इस सब का समाधान वैश्विक स्तर पर एक मुद्दा बना हुआ है, लेकिन आतंकवाद से पूर्णत: निजात पाकर कब चैन की सांस ले पायेंगे, उस दिन का इंतजार हम सबको है। वैसे इस संदर्भ में हम अपने देश भारत को ही देखें तो ऐसा लगता है कि वाकई यहाँ से आतंकवाद का खात्मा बहुत जल्द ही होने वाला है। भले ही आतंकवादियों की हमलावर, अत्याचारी और साजिशों भरा कदम अभी तक नहीं थका है, लेकिन उनको शायद यह पता नहीं यह कदम उनके अंत की ओर ही जा रहा हैं।
भारत में बरसों पहले, सन् 1989 में कश्मीर में आतंकवाद ने अपनी दूसरी दस्तक दी थी। तब से आतंकवाद का जेहादी संस्करण तकरीबन एक लाख इंसानों की कुर्बानियां ले चुका है। कश्मीर से बाहर आकर संसद से सड़क तक, पुलों से लेकर रेलों तक, सब स्थानों पर उसने अपने विध्वंसकारी मंसूबों को अंजाम दिया है। कश्मीर में आतंकवाद का आगाज जे। के। एल। एफ। (Janimu Kashmir Liberation front) के माध्यम से हुआ है, जो कश्मीर की मुकम्मल आजादी को अपना लक्ष्य बनाकर मैदान में आया था। लेकिन जे। के। एल। एफ। के स्थान पर पाक इंटेलीजेंस आई एस आई ने हिजबुल मुजाहिदीन को महत्व दिया, जो कि कश्मीर के पाक में विलय का हिमायती है। अफगानिस्तान में सोवियत सेनाओं के विरूद्ध इस्लामिक जेहादियों के मोर्चा खोलने के लिए आई एस आई ने अलकायदा को पाला-पोसा था और अलकायदा के अफगान मुजाहिदों को आई एस आई ने कश्मीर में विद्रोहियों को आतंकवाद की ट्रेनिंग के लिए सबसे पहले इस्तेमाल किया। इस तरह सन् 1990 से ही कश्मीर के कथित जेहाद में अलकायदा की बाकायदा उपस्थिति दर्ज की गई है। हिजबुल मुजाहिदीन संगठन में कश्मीरी नौजवानों की क्षमता कायम रही और इसका कमांडर भी एक कश्मीरी रहा है।
अब, जबकि अमेरिका के कूटनीतिक दबाव के कारण आई एस आई को जेहादी आतंकवादियों की सीधी सरपरस्ती से पीछे हटना पड़ रहा है, अलकायदा ने संपूर्ण आतंकवादी नेटवर्क पर अपना आधिपत्य कायम कर लिया है। लम्बे वक्त से अलकायदा और ओसामा बिन लादेन एक दूसरे के पूरक रहे हैं। न्यूयार्क ट्रेड सेंटर से लेकर वर्ल्ड ट्रेड सेंटर तक अलकायदा के जेहादियों ने अमेरिका को अपनी विध्वसंक साजिश निशाना बनाया। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कबाइली इलाकों में भी छुपकर अलकायदा और लादेन सारी दुनिया में अपनी कारगुजारियों को अंजाम दे रहे हैं।
इधर बंग्लादेश भी इस आतंकवाद का एक बहुत बड़ा अड्डा बनता जा रहा है। भारत में जेहादी आतंकवादियों की घुसपैठ इसी अलकायदा के अड्डों से हो रही है। अलकायदा का वास्तविक मकसद मजहब के नाम पर दुनिया के मुसलमानों को एकजुट करके एक ‘इस्लामिक दुनिया’ बनाना है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के खातिर अलकायदा ने हिन्दु धर्मस्थलों को अपना पहला निशाना बनाया ताकि धार्मिक वैमनस्य फैलाकर भारत को हिन्दू मुसलमानों के मध्य विभाजित किया जाए। लेकिन अलकायदा की ये कोशिश काश्मीर से ही नाकामयाब हो गयी और वह भी पिछले पन्द्रह सालों की कोशिशों के बावजूद। यह इसलिए संभव हो पाया है कि कश्मीरी नागरिक अपनी परपरांगत कश्मीरियत पर कायम हैं।
सूफीवाद के दर्शन से ओतप्रोत कश्मीरियों ने हमेशा इन्सानी भाईचारे को साकार किया है। पंजाब के उदाहरण से यह बात और भी साफ हो सकती है कि धर्मनिरपेक्षता और देशभक्ति से संकीर्ण मजहबी आतंकवाद को बखूबी परास्त किया जा सकता है। इसलिए अलकायदा के जेहादियों से संघर्ष करते हुए भारत को अपनी धर्मनिरपेक्षता और देशभक्ति पर अडिग रहना होगा। कश्मीर में जेहादियों ऐसी जबरदस्त नाकमी इस बात को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि भारत अलकायदा की साजिशों से निपट सकता है। यह स्थिति एक और तथ्य से भी स्वयं सिद्ध हो जाती है कि विगत पांच वर्षों के दौरान जो सक्रिय आतंकवादी गिरफ्तार किए गए हैं, उनकी संख्या तकरीबन 15 हजार रही और इनमें से तकरीबन 11 हजार जेहादी आतंकवादी, पाकिस्तान एवं अन्य देशों के रहे हैं। तो पन्द्रह वर्षों की तमाम कोशिशों के बाद भी जहाँ जेहादी, कश्मीर में निरंतर छापामार युद्ध करने की स्थिति तक पहुंच नहीं पाया वहां अपने आतंकवाद का कहर बरसाकर पूरे भारत से कैसे निबट पाएगा? ऐसे में कहा जा सकता है आतंकवाद की आतंकी साजिशों को अब उल्टे कदम थामना पड़ेगा, पिछे की तरफ वापस लौटना ही पड़ेगा।
Essay on Terrorism in Hindi 750 Words
आतंकवाद और अमेरिका
9/11 की घटना से हम सब परिचित ही हैं। इस दिन को विश्व के काल दिना का श्रेणी में रखा जाता है। यह घटना विश्व की भयावह घटनाओं में से एक सर्वाधिक भयावह घटना थी। इस दिन अमेरिका के न्यूयॉर्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर और वाशिंगटन स्थित प्रशासनिक मुख्यालय पेंटागन को कतिपय आतंकवादी संगठनों के प्रशिक्षित आतंकवादियों द्वारा हवाई जहाज के माध्यम से निशाना बनाया गया और उन्हें पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया। इस घटना से पूरे अमेरिका में ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में कोहराम मच गया। सारा विश्व इसके बाद स्तब्ध सा रह गया। आतंकवाद की यह सर्वाधिक प्रबल अभिव्यक्ति थी जिसे अमेरिका जनता को भुगतना पड़ा था।
वस्तुत: आतंकवाद आज विश्व की सर्वाधिक विकराल समस्याओं में से है। इसके दुष्प्रभाव आज सम्पूर्ण विश्व को अपने स्तर पर झेलने पड़ रहे हैं। विश्व का शायद ही कोई देश ऐसा हो, जिसे आतंकवाद की काली छाया का सामना कभी न कभी, किसी न किसी रूप में न करना पड़ा हो। वस्तुत: लोकतांत्रिक राजनीति और व्यापक रूप से आयोजित किये गए औद्योगिक विकास ने सांमती-सोच वाले लोगों को सामाजिक-आर्थिक रूप से परिवर्तित होने पर बाध्य किया। किन्तु इससे उनके स्वार्थों का हनन होता था। इसी कारण आतंकवादी संगठन अपने स्वार्थवश आधुनिकता का विरोध कर, सामंती जीवन पद्धति पर बल देते हैं। इसके लिए पूर्णत: हिंसात्मक क्रियाकलापों को ही ग्रहण करते हैं और मासूम लोगों की हत्याओं से पूरे समाज में भय का संचार करते हैं, ताकि कोई भी उनका विरोध करने का साहस न कर सके। आतंकवाद भय के व्यापार पर ही चलता है। दूसरे शब्दों में कहें तो आतंकवाद एक प्रकार से भय का व्यापार है।
9/11 के बाद अमेरिकी समाज और वहां के सरकारी-तंत्र ने प्रत्यक्ष रूप से आतंकवाद के घिनौने रूप का अनुभव किया। इसके बाद समग्र रूप से आतंकवाद को विश्व-मानवता के लिए घातक माना गया और वैश्विक स्तर पर इसके विरूद्ध संगठित होने की अनिवार्यता को महसुस किया गया। किन्तु ऐसा नहीं कहा जा सकता कि अमेरिका किसी प्रकार की विश्व-शांति का चहेता देश है। उसके अपने आर्थिक और राजनीतिक स्वार्थ हैं जिन्हें पूरा करने के लिए वह नित नयी राजनीतियां निर्मित और कार्यान्वित करता रहता है। आजकल अमेरिकी प्रशासन इसी प्रकार की एक दषित रणनीति को वैश्विक स्तर पर कार्यान्वित कर रहा है। वह सायास रूप से यह झूठा प्रचार कर रहा है कि आतंकवाद मुस्लिम देशों की उपज है। इसके माध्यम से वह मुस्लिम देशों को अपने आर्थिक-स्वार्थों की पूर्ति का साधन बनाना चाहता है। हम आतंकवाद के निकृष्ट प्रत्यय का पूर्णत: विरोध करते हैं किन्तु जो देश अपने आर्थिक स्वार्थों की पति के लिए इस आतंकवाद को निशाना बनाते हैं उनका भी समर्थन नहीं किया जाना चाहिए।
9/11 के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला बोल दिया। इस हमले का नुकसान आतंकवादी संगठनों को नहीं भुगतना पड़ा, बल्कि इस विनाश का शिकार अधिकतर वहां की मासूम जनता बनी। आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष करने वाले देशों को इस पर विचार करना चाहिए, क्योंकि आतंकवादी संगठन किसी धर्म, जाति अथवा किसी अन्य सामाजिक पहचान से जुड़े हुए नहीं होते हैं। उनका कोई धर्म और कोई मजहब नहीं होता। अत: हमें भी आतंकवादियों को धर्म आदि से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। ऐसे किसी धर्म विशेष से संबंधित समूचे समाज को ही आतंकवादी परिभाषित कर देते हैं। अमेरिका मुस्लिम-समाज के साथ आज ऐसा ही कर रहा है।
जिन लोगों ने अमेरिका में आतंकवादी घटनाएँ की उनका न तो कोई धर्म था और न ही कोई जाति। वे हत्यारों के अलावा और कुछ नहीं हो सकते । किन्तु हमें इस बात का पूरा ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि अपने निहित-स्वार्थों से गतिशील आतंकवादी आम लोगों की सामाजिक,
आर्थिक स्थिति तथा गरीबी का फायदा न उठा सकें । अमेरिका पर आतंकवाद की दस्तक कहीं न कहीं उसकी दूषित आर्थिक नीतियों का ही परिणाम है। उसे इस पर विचार करना चाहिए।
आतंकवाद जैसी विकराल समस्या के सामाधान के लिए बहुत ही कठोर नीति अवलम्बन करनी चाहिए और हमें व्यापक रूप से ऐसी नीतियों का ग्रहण करना चाहिए, जिससे हम विश्व से आतंकवादी-मनोवृति का सफाया कर सकें और समूचे विश्व में शांति की स्थापना कर सकें।
Essay on Terrorism in Hindi 800 Words
‘राजधानी में बम विस्फोट : पांच व्यक्ति मरे बीस घायल’, ‘सीमा पार से तीन आतंकवादी देश की सीमा में घुसे’ ; पोस्ट ऑफ़िस में एंथ्रेक्स का संदेश’ जैसे अनेक समाचार आए दिन समाचारपत्रों, दूरदर्शन और रेडियो की सुर्खियाँ बने नज़र आते हैं। जहाँ देखो आतंकवाद का बोलबाला है। आतंकवाद की यह समस्या केवल भारत की ही नहीं, सारे विश्व की समस्या है। अल्बू निदाल, ओसामा बिन लादेन जैसे अंतर्राष्ट्रीय शस्त्र-तस्कर और आतंकवादियों ने विश्व के लगभग सभी देशों को आतंकवाद का लक्ष्य बनाया है। आतंकवाद एक भयंकर चुनौती के रूप में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उभरा है। यह विश्व क्षितिज पर प्रलयंकारी बादलों की भाँति छाया हुआ है और प्रति क्षण मानव जाति के लिए संकट का वाहक बना हुआ है। कोई नहीं जानता कब किसके ऊपर उसकी गाज गिरे और विनाशलीला प्रकट हो जाए। हाल ही में अमरीका व भारत में कश्मीर में हुए आतंकवादी हमले इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
आतंक का अर्थ है ‘भय’। आतंकवादी ऐसे किसी भी संगठन के सदस्य हो सकते हैं जो अपने किसी राजनैतिक, सामाजिक, अथवा धार्मिक उद्देश्यों की प्राप्ति विनाशकारी उपायों से करते हैं। वे निरीह लोगों की हत्या करके, सार्वजनिक अथवा धार्मिक उद्देश्यों की प्राप्ति विनाशकारी उपायों से करते हैं। वे निरीह लोगों की हत्या करके, सार्वजनिक स्थलों पर बम विस्फोट करके, सरकारी सम्पत्ति को हानि पहुंचाकर समाज में आतंकवाद फैलाते हैं। इस कारण मनुष्य हर क्षण संत्रस्त तथा डरा हुआ बना रहता है।
आतंकवाद वस्तुत: अतिवाद का दुष्परिणाम है। आज के भौतिकवादी युग में अतिवाद की काली छाया इतनी बढ़ गई है कि चारों ओर असंतोष की स्थिति तेजी से बढ़ रही है। असंतोष की अभिव्यक्ति अनेक माध्यमों से होती है। आतंकवाद आज राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए एक अस्त्र बन गया है। अपनी बात मनवाने के लिए आतंक उत्पन्न करने की पद्धति एक सामान्य नियम बन गई है। आज यदि शक्तिशाली देश निर्बल देशों के प्रति उपेक्षा का व्यवहार करता है तो उसके प्रतिकार के लिए आतंकवाद का सहारा लिया जाता है। उपेक्षित वर्ग भी अपना अस्तित्व प्रमाणित करने के लिए आतंकवाद का मार्ग अपनाता है।
स्वार्थबद्ध संकुचित दृष्टि ही आतंकवाद की जननी है। क्षेत्रवाद, धर्माधता, भौगोलिक एवं ऐतिहासिक कारण, सांस्कृतिक टकराव, भाषाई मतभेद, आर्थिक विषमता, प्रशासनिक मशीनरी की निष्क्रियता और नैतिक ह्रास अंतत: आतंकवाद के पोषण एवं प्रसार में सहायक बनते हैं।
भारत को जिस प्रकार के आतंकवाद से जूझना पड़ रहा है, यह भयावह और चिंतनीय इसलिए है क्योंकि उसके मूल में अलगाववादी और विघटनकारी तत्त्व काम कर रहे हैं। स्वतन्त्रता प्राप्ति के तत्काल पश्चात् से ही देश के विभिन्न भागों में विदेशी शह पाकर आतंकवादी सक्रिय हो उठे थे। इसका दुष्पारेणाम यह है कि आज कश्मीर का एक बहुत बड़ा भाग पाकिस्तानी कबाइलियों और उनके देश में आए पाक सैनिकों के हाथ पहुंच गया है। आज तो कश्मीर में आतंकवाद का प्रभाव इस सीमा तक बढ़ चुका है कि वहाँ के मूल निवासी शरणार्थी बनकर मारे-मारे भटक रहे हैं।
केवल कश्मीर ही नहीं अपितु नागा पहाड़ी क्षेत्र, मिजोरम, सिक्किम, पंजाब आदि आतंकवाद का शिकार बन रहे हैं। उत्तर-पूर्व राज्यों में भी आतंकवाद रह-रहकर उभरता रहता है। देश के कुछ भागों में नक्सली आतंकवादी आज भी सक्रिय हैं। फलस्वरूप हमेशा भय, आतंक और तनाव का वातावरण बना रहता है। इसका अंत कब, कहाँ और किस प्रकार होगा ? सरकार भी इस संबंध में कुछ निश्चित कह पाने में असमर्थ है। शासन व्यवस्था बेकार सी होकर रह गई है।
जहाँ-जहाँ आतंकवादियों का बोलबाला है, वहाँ-वहाँ की आम जनता का जीवन प्रायः ठप्प है। वहाँ अगर हलचल और सक्रियता दिखाई देती है तो बस आतंकवादियों के उग्र-घातक कार्यों में या फिर उन्हें दबाने और निष्क्रिय करने के कार्य में लगे सुरक्षा बलों और सेना की गतिविधियों में। आतंकवाद पशुता है एवं दानवता है। हर आतंकवादी संगठन मानवता का शत्रु है चाहे वह उल्फा हो, लिट्टे हो, अथवा कश्मीरी उग्रवादी संगठन या तालिबान हो या अल-कायदा।
मानवीय मूल्यों से रहित आतंकवादी विचारधारा को समाप्त करने के लिए जहाँ एक ओर तो आज संसार के सारे देशों का कटिबद्ध होकर शक्ति प्रयोग द्वारा इसका अंत करना होगा, वहीं दूसरी ओर इस असंतोष के कारणों तथा आम लोगों के नैतिक मूल्यों का विकास तथा राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करना होगा। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग तथा ‘जय जगत’ की कल्पना को विकसित करना होगा। सौहार्द एवं मैत्री की अवधारणा को जन-मानस तक पहुंचाना होगा और इन सबसे ऊपर हमें जनता में इतना आत्मबल विकसित करना होगा कि वह असहाय, मूक और निरीह दर्शक बने रहने के बजाय स्वयं आगे आकर आतंकवाद से टकरा सके।
Terrorism in India essay in Hindi 1000 Words
आतंकवाद किसी एक व्यक्ति, समाज अथवा राष्ट्र विशेष के लिए ही नहीं अपितु पूरी मानव सभ्यता के लिए कलंक है। हमारे देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में इसका विष इतनी तीव्रता से फैल रहा है कि यदि इसे समय रहते नहीं रोका गया तो यह पूरी मानव सभ्यता के लिए खतरा बन सकता है।
शाब्दिक अर्थों में आतंकवाद का अर्थ भय अथवा डर के सिद्धान्त को मानने से है। दूसरे शब्दों में, भययुक्त वातावरण को अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति हेतु तैयार करने का सिद्धान्त आतंकवाद कहलाता है। विश्व के समस्त राष्ट्र प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इसके दुष्प्रभाव से ग्रसित हैं। रावण के सिर की तरह एक स्थान पर इसे खत्म किया जाता है तो दूसरी ओर एक नए सिर की भांति उभर आता है। यदि हम अपने देश का ही उदाहरण लें तो हम देखते हैं कि अथक प्रयासों के बाद हम पंजाब से आतंकवाद को समाप्त करने में सफल होते हैं तो यह जम्मू-कश्मीर, आसाम वं अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों में प्रारम्भ हो जाता है। पड़ोसी देश पाकिस्तान द्वारा भारत में आतंकवाद को समर्थन देने की प्रथा तो निरन्तर पचास वर्षों से चली आ रही है।
हमारा देश धर्मनिरपेक्ष देश है। यहां पर अनेक धर्मों के मानने वाले लोग निवास करते हैं। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, ब्रह्म समाजी, आर्य समाजी, पारसी आदि सभी धर्मों के अनुयाइयों को यहां समान दृष्टि से देखा जाता है तथा सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं। वास्तविक रूप में धर्मों का मूल एक है। सभी ईश्वर पर आस्था रखते हैं तथा मानव कल्याण को प्रधानता देते हैं। सभी धर्म एक-दूसरे को प्रेमभाव और मानवता का संदेश देते हैं परन्तु कुछ असामाजिक तत्व अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए धर्म का गलत प्रयोग करते हैं। धर्म की आड़ में वे समाज को इस हद तक भ्रमित कर देते हैं कि उनमें किसी एक धर्म के प्रति घृणा का भाव समावेशित हो जाता है। उनमें ईष्र्या, बैर व परस्पर अलगाव इस सीमा तक फैल जाता है कि वे एक दूसरे का खून बहाने से भी नहीं चूकते हैं।
देश में आतंकवाद के चलते पिछले पांच दशकों में 50,000 से भी अधिक परिवार प्रभावित हो चुके हैं। कितनी ही महिलाओं का सुहाग उजड़ गया है। कितने ही माता-पिता बेऔलाद हो चुके हैं तथा कितने ही भाइयों से उनकी बहनें व कितनी ही बहनें अपनी भाइयों से बिछुड़ चुकी हैं। पिछले दशक के हिंदू-सिख दंगों में कितने ही लोग जिन्दा जला दिए गए। इसी आतंकवाद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या कर दी। हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व० राजीव गाँधी इसी आतंक रूपी दानव की क्रूरता का शिकार बने। अनेक नेता जिन्होंने अपने स्वार्थों के लिए आतंकवाद का समर्थन किया बाद में वे भी इसके दुष्परिणाम से नहीं बच सके। पाकिस्तान के अंदर बढ़ता हुआ आतंकवाद इसका प्रमाण है। वहाँ के शासनाध्यक्षों पर लगातार आतंकी हमले हो रहे हैं। पूरी दुनिया में छोटी-बड़ी आतंकवादी घटनाओं का एक सिलसिला सा चल पड़ा है।
धरती को स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर में तो खून की नदियाँ बहना आम बात हो गई है। प्राकृतिक सौंदर्य का यह खजाना आज भय और आतंक का पर्याय बन रहा है। खून-खराबा, मार-काट, बलात्कार आदि घटनाओं से ग्रस्त यह प्रदेश पांच दशकों से पुन: अमन-चैन की उम्मीदें लिए कराह रहा है। आतंकवाद के कारण यहाँ का पर्यटन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। हजारों की संख्या में लोग यहाँ से पलायन कर चुके हैं। विगत वर्षों में इस आतंकवाद ने कितनी जाने ली हैं कितने सैनिक शहीद हुए हैं, इसका अनुमान लगाना मुश्किल हो गया है। चूंकि यह आतंकवाद एक सुनियोजित अभियान के तहत चलाया जा रहा है, इसलिए इसकी समाप्ति इतनी सरल नहीं है।
भारत में दंगों का एक लम्बा इतिहास रहा है। हर दंगे अपने पीछे घृणा और आपसी वैमनस्य के बीज छींट कर फिर से कई नए दंगों की पृष्ठभूमि तैयार करते हैं। गुजरात के दंगे अब तक के भीषणतम दंगे कहे जा सकते हैं। निर्दोष कार सेवकों को जलाने की घटना से शुरू हुए ये दंगे हजारों के लिए किसी दु:स्वप्न से कम नहीं थे मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि राजनीतिक दलों और मीडिया ने इस घटना में आग में घी डालने जैसी हरकतें कीं। यह पहली घटना नहीं है कि जब भी दो समुदायों के बीच झड़पें, विवाद और दंगे होते हैं, सत्ताधारी व विपक्ष इससे अपने-अपने लाभ की बात सोचते हैं जिसे भारतीय राजनीति का एक विकृत स्वरूप कहा जा सकता है।
कुछ राजनीतिक दलों की मान्यता है कि यदि अल्पसंख्यकों के मन में असुरक्षा का भय बना रहे तो उनकी सुरक्षा की दुहाई देकर उनके वोट हासिल किए जा सकते हैं। ये दल जब सत्ता में आते हैं तब अल्पसंख्यकों के प्रति तुष्टीकरण की नीति अपनाकर अपना हितसाधन करते हैं। लेकिन विडम्बना यह है कि भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय मुसलमानों में गरीबी और अशिक्षा अधिक मात्रा में व्याप्त है जिसकी तरफ किसी नेता का ध्यान नहीं जाता। अशिक्षा भी आतंकवाद का एक मुख्य कारण है।
आतंकवाद के चलते खलनायकों को नायक के रूप में देखा जा रहा है। ऐसा नहीं है कि केवल निरीह लोग ही इसकी गिरफ्त में आते हैं। आतंकवाद ने अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश को भी नहीं बख्शा जिसके फलस्वरूप हजारों लोग मौत के मुँह में समा गए तथा उसे अरबों डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा।
आतंकवाद मानव सभ्यता के लिए कलंक है। उसे किसी भी रूप में पनपने नहीं देना चाहिए। विश्व के सभी राष्ट्रों को एक होकर इसके समूल विनाश का संकल्प लेना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी को हम एक सुनहरा भविष्य प्रदान कर सकें।
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