Valentine Day Hindi Essay वेलेंटाइन डे पर निबंध
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Valentine Day in Hindi
हर साल 14 फरवरी को मनाए जाने वाले ‘वेलेंटाइन डे’ को लेकर तमाम तरह की बातें होने लगती हैं। कोई इस दिवस का विरोध करता है तो कोई इसका समर्थन करता है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नागरिक के मूलभूत अधिकारों में शामिल है और यह हर किसी के लिए अच्छा भी है। अभिव्यक्ति को दबाना इच्छाओं को दबाना तो है ही, साथ ही स्वतंत्रता का भी हनन है। ‘वेलेंटाइन डे’ ऐसा त्योहार है, जब लोग प्यार, मोहब्बत और खुशियां बाटते हैं। युवाओं के लिए इससे बढ़कर कोई त्योहार हो ही नहीं सकता। आखिर युवा प्यार नहीं करेंगे, तो कौन करेगा? प्यार-मोहब्बत के प्रतीक इस त्योहार का किसी के द्वारा विरोध करना भला कहां तक सही है?
प्यार का मतलब प्रेमी और प्रेमिका के बीच होने वाला प्यार ही नहीं है। प्यार का मतलब माता-पिता से प्यार करना भी हो सकता है। प्यार का मतलब अपने भाई-बंधु से प्यार करना हो सकता है। प्यारे का मतलब अपने किसी प्रिय व्यक्ति से प्यार करने से हो सकता है, जिसे जाहिर करने में कोई बुराई नहीं आती। जरूरी नहीं कि इसे युवा ही मनाएं और बुजुर्ग लोगों को इससे कुछ नहीं लेना, बल्कि बुजुर्ग भी इसे मना सकते हैं। अपनी भावनाओं को जाहिर करने में भला किसी को क्या नुकसान पहुँच सकता है? प्यार तो इज्जत और सम्मान का प्रतीक है।
वेलेंटाइन के विरोध में हर साल देश में भारी तोड़-फोड़ और हिंसक वारदातें होती हैं। कई शहरों में कुछ दल के लोगों ने युवक और युवतियों पर फासिस्टिक हमले किये थे। दुकानों, होटलों में घुसकर तोड़-फोड़ की थी। वहृत से दल इस दिवस को लेकर एकमत नहीं हैं। कुछ दल इसके पक्ष में हैं तो कुछ विपक्ष में हैं। कुछ कट्टरपंथियों का मानना है कि इस दिवस से हमारी संस्कृति का ह्रास हो रहा है। उनका कहना है कि यह पश्चिमी सभ्यता है और यह हमारी संस्कृति के विपरीत है।
जिस प्रकार से फादर्स डे। मदर्स डे, टीचर्स डे आदि मनाने में हमें कोई दिक्कत नहीं होती। उसी तरह वेलेंटाइन डे मनाने में भी दिक्कत नहीं होनी चाहिए। भारतीय संस्कृति में हमें अपने माँ-बाप को याद करने के लिए दिन या डे का मोहताज नहीं होना पड़ता। ऐसे में हम किसी दिन को इतनी महत्व नहीं देते। पर फिर भी यदि आजकल की युवा पीढ़ी वेलेंटाइन डे को मनाने में कोई दिक्कत नहीं समझती और खुशी-खुशी मनाती है, तो हमें उससे क्या पेरशानी है? हमारी संस्कृति में तो साडी-धोती पहनना हैं, फिर क्यों आजकल के लोग जींस, टाई, म्कर्ट और पैंट पहने हुए ही नजर आते हैं । लेकिन वेलेंटाइन की आड़ में अगर कोई गलत कार्य हो रहा है, तो उसका विरोध सही है। जो लोग इस दिवस का विरोध करते आये हैं उनके बच्चे भी कांवेंट स्कूल में पढ़ते हैं और इंग्लिश सीखते हैं, तो उस बारे में वे क्या कहेंगे । इंग्लिश सीखना कोई गलत बात नहीं है ओर रही बात अंग्रेजी त्योहारों की, तो उनके त्योहारों को मनाने में हम सबको कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। वैसे भी यह प्यार का पर्व है, न कि दुश्मनी का। इस पर्व का विरोध करने वालों को ऐसी चीजों का विरोध करना चाहिए जिससे हमें और हमारे समाज को नुकसान पहुंचता है।
वेलेंटाइन डे युवा जगत की सांस्कृतिक प्रक्रिया है, जो अबोध है। आबादी का चविन फीसदी घास-फूस की तरह उड़ाया नहीं जा सकता। हर माँ-बाप चाहते हैं कि उनका बच्चा कम्प्यूटर सीखकर अमेरिकी डॉलर कमाने लगे। लडकी भी कमाने लगे, अपने पैरों पर खड़े हो जाए। तो ऐसी आधुनिक सोच-विचार रखने वाले जन समाज, नयी पीढी के नये-नये अन्दाजों को सही दिशा देनी चाहिए, न कि उसकी सिर्फ एक तरफ बराई को देखकर मुँह फेर लेना है। जैसे कि वेलेंटाईन डे मनाने में भी कुछ बुराई है, जिसे हम नजर अन्दाज नहीं कर सकते। सीमा या हद जैसे शब्द इसमें भी लागू होने चाहिए। प्यार मोहब्बत तो जिंदगी के खूबसूरत पहलू बनकर उमभर साथ निभाते रहेंगे। लेकिन तब, जब हम इसके मतलब को सही मायने से समझ पायेगे, जब इसकी ऊंगली पकड़कर हम सही रास्ते में कदम थामेंगे। आज की पीढ़ी तो इसका मतलब अपनी ही समझ से लगाती है। वेलेंटाइन डे का त्योहार मनाते वक्त वे ने तो उस पश्चिमी महानी को याद करते हैं और न अपनी श्यामा-श्याम को। उन्हें कुछ याद होता है तो बस पार्क से लेकर क्लब और सिनेमा हॉल तक। तोहफे से लेकर होटल, रेस्तराँ तक। इनके ख्याल से प्रेम की भावना घर के मधुर या एकांत परिवेश में नहीं, बल्कि बाजार की भीड़-भाड़ में ही व्यक्त की जानी चाहिए। लेकिन असल बात तो यह है कि आज बाजारवाद के दौर में हर चीज बिकाऊ हो गयी हैं यहां तक कि प्रेम जैसे पवित्र रिश्ते को भी वेलेंटाइन डे के नाम पर बाजार में परोसा जा रहा है। प्रेम के इजहार के लिए संवेदना नहीं, तोहफे अहमियत रखने लगे हैं।
प्यार को समझाना भले ही कठिन हो पर इसकी जरूरत सदा रही है। और वेलेंटाइन डे को तब दिल की गहराई से सब अपनायेंगे, जब प्यार-मोहब्बत को एक जरूरत मानकर सभी लोग अपनायेंगे।
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