Vastu Shastra in Hindi Essay वास्तुशास्त्र पर निबंध
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Vastu Shastra in Hindi
वास्तुशास्त्र पर निबंध
‘वास्तु’ प्राचीन विज्ञान है और यह यथार्थवादी ऊर्जा के प्रभावों पर आधारित है। यह चुंबकीय तरंगों अथवा ध्वनि तरंगों से भी संबद्ध है। बहुत से प्राचीन विज्ञान का आधार, “सकारात्मक और नकारात्मक” ऊर्जा के मूल स्वभाव के नित्य परिवर्तनशील क्रिया को मानव के लिए उपयोगी बनाने से संबंधित होता था। सामाजिक और प्राकृतिक वातावरण से मनुष्य का दिमागी और शारीरिक स्वास्थ्य निकटता से जुड़ा हुआ है। इस वातावरण को लोगों के अनुकूल बनाने में यह अपनी पहचान बना चुका है।
यथातथ्य ‘ज्यो’ का अर्थ ‘पृथ्वी’ तथा ‘पैथी’ का तात्पर्य ‘व्याधि’ से है। भू-शास्त्र में पृथ्वी की व्याधियों का अध्ययन किया जाता है। भू-शास्त्र की सबसे खास बात यह है कि यह पृथ्वी की बनावट ओर पृथ्वी के आंतरिक भाग की अदृश्य तरंगोडू दोनोडू को समान रूप से महत्व देता है। भू-शास्त्र विश्व के चारों तरफ ब्रह्मांड से उत्पन्न होने वाली विद्युत चुंबकीय तरंगों की पहचान करता है।
भू-शास्त्र के और भी बहुत से घटक हैं जो इसे महत्वपूर्ण सिद्ध करते हैं। एक महत्वपूर्ण घटक पृथ्वी के आंतरिक भाग में सतत चलने वाली प्रक्रिया में अचानक हुए परिवर्तन अथवा विघटन का अध्ययन है, क्योंकि पृथ्वी के आंतरिक भाग में हुए परिवर्तनों का परिणाम काफी गंभीर रूप से पृथ्वी के बाह्य भाग पर देखने को मिलता है। डॉ. एर्न हार्टमैन (जर्मन वैज्ञानिक) ने दो रेखाओं का आविष्कार किया था जो एक-दूसरे को बीच से विभाजित करती थीं और पूर्व-पश्चिम तथा उत्तर-दक्षिण दिशा को दर्शाती थीं, जहां पर ये दोनो रेखाएं आपस में मिलती थी, दुगनी सकारात्मकता अथवा दुगुनी नकारात्मकता को दर्शाती थीं। बहुत से परीक्षणों के उपरांत इस क्षेत्र में स्थायित्व प्राप्त हुआ और इन विभाजित रेखाओं के द्वारा जैविक व्याधि जैसे कैंसर आदि के विषय में जानकारियां प्राप्त करने में काफी मदद मिली है।
आधुनिक भू-शास्त्र ने बहुत से ऐसे कारकों का पता लगाया है, जो किसी भवन या इमारत को व्याधियों के संपर्क में ला देते है। भू-शास्त्र के अनुसार बिना किसी ठोस वजह के यदि किसी क्षेत्र में अपरिवर्तित रूप से आर्द्रता बनी हुई है, तो वहाँ पर ‘नकारात्मक ऊर्जा’ का प्रभाव होता है। वास्तु के अनुसार ऐसे किसी भी क्षेत्र में निर्माण कार्य नहीं करना चाहिए, जहाँ पर आर्द्रता स्थायी रूप से बनी रहती है। वास्तु ऐसे किसी भी भूखंड के प्रयोग के लिए स्वीकृति नहीं प्रदान करता है। भू-शास्त्र इस अनुवीक्षण को स्वीकार कर चुका है। जिस स्थान पर चींटियों का घर हो, उस स्थान पर नकारात्मक विषयों का जाल होता है और ऐसा स्थान उपयक्त नहीं होता है। भू-शास्त्र के अनुसार किसी भी भूखंड पर कोई भी निर्माण करने से पूर्व नकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाले कारणों का अच्छी तरह से अवलोकन कर लेना चाहिए। वास्तु के अनुसार ऐसा भूखंड हैं जिसके वृक्षों पर मधुमक्खियों का छत्ता हो नकारात्मक ऊर्जा से संबंधित होता है। भू-शास्त्र के अनुसार मधुमक्खियाँ और उनके छत्ते नकारात्मक ऊर्जा को दर्शाते हैं। यदि किसी भूखंड में मधुमक्खियाँ अपना छत्ता बना रही है तो ऐसे भूखंड का प्रयोग नकारात्मक ऊर्जा के दोष का निवारण करके किया जा सकता है।
वास्तु के अध्ययन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि इसका स्वास्थ्य से गहरा संबंध है। पृथ्वी के पास एक चुंबकीय क्षेत्र है, यह तथ्य प्रमाणित हो चुका है। पृथ्वी से उत्पन्न कुछ तरंगें लाभदायक हैं तो कुछ हानिकारक। हानिकारक तरंगें पृथ्वी के अंदर समाहित अयस्क को दर्शाती हैं तथा पृथ्वी के अंदर होने वाली निरंतर प्रक्रिया और शैलों की एक सीध में समानांतर उपस्थिति को स्पष्ट करती हैं।
उल्लेखनीय है कि जिप्सी लोगों को कभी भी कैंसर नहीं होता था, क्योंकि वे यायावर थे और स्थायी रूप से किसी एक जगह पर नहीं रहते थे। इससे यह तथ्य प्रमाणित होता है कि पृथ्वी की हानिकारक तरंगों के संपर्क में लंबे समय तक रहने से कैंसर की संभावना उत्पन्न होती है।
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