War and Peace Essay in Hindi युद्ध और शांति पर निबंध
|Many people are searching for War and Peace Essay in Hindi ( युद्ध और शांति पर निबंध ), so we are sharing War and Peace Essay in Hindi युद्ध और शांति पर निबंध for students of class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 and college students.
War and Peace Essay in Hindi
War and Peace Essay in Hindi 800 Words
मनुष्य को गुण, कर्म और स्वभाव से शान्त प्रकृति वाला प्राणी माना जाता है; यद्यपि हर आदमी के भीतरी कोने में अज्ञान रूप से एक हिंसक प्राणी भी छिपा रहा करता है। प्रायः मनुष्य भरसक चेष्टा कर के भी उसे जागने नहीं देता। जब किसी कारणवश वह जाग ही पड़ता है, तभी तरह-तरह की संघर्षात्मक क्रिया-प्रक्रियाओं और प्रतिक्रियाओं का भी जन्म हुआ करता है। उन्हीं के घर्षण-प्रत्याघर्षण से उत्पन्न हुआ करती है युद्धों की ज्वाला। यह घर्षण-प्रयाघर्षण जब व्यक्ति या व्यक्तियों के बीच हुआ करता है, तब तो इस सामान्य लड़ाई, गुटीय या साम्प्रदायिक झगड़े जैसे नाम दे दिये जाते हैं। लेकिन जब इस प्रकार की बातें दो देशों के बीच हो जाया करती हैं, तब उसे नाम दिया जाता है-युद्ध! इस प्रकार युद्ध और शान्ति आपस में विलोम कहे और माने जाते हैं। एक के रहते दूसरे का रह पाना कतई संभव नहीं हुआ करता।
सामान्य जीवन जीने के लिए, जीवन में स्वाभाविक गति से प्रगति एवं विकास करने के लिए शान्ति का बना रहना बहुत आवश्यक हुआ करता है। संस्कृति, साहित्य तथा अन्य सभी तरह की ललित एवं उपयोगी कलाएँ भी तभी विकास पा सकती हैं, जब चारों ओर का वातावरण शान्त एवं सामान्य रूप से सुखद हो। हर प्रकार के व्यापार की उन्नति भी शान्त वातावरण में ही संभव हुआ करती है। इन सभी की उन्नति और विकास कोई एक-दो दिन में ही नहीं हो जाया करता। हजारों वर्षों की निरन्तर साधना और प्रयत्न के बाद ही ज्ञान-विज्ञान, साहित्य-कला और संस्कृति आदि का कोई स्वरूप बन पाया करता है। लेकिन युद्ध का एक ही झटका युग-युगों की इस साधना को देखते-ही-देखते मटिया-मेट कर दिया करता है। कला-संस्कृति के सभी रूप खण्डहर बन कर रह जाया करते हैं। युद्ध के समय तो विनाश हुआ ही करता है, उसके समाप्त हो जाने के बाद भी वर्षों तक उसका प्रभाव बना रहता है। इसी कारण युद्ध का मनुष्य हमेशा विरोध करता रहता है। शान्ति हमेशा मानव-जाति का इच्छित विषय रहा और आज भी है।
आरम्भ से मनुष्य युद्धों का विरोध करता आ रहा है। युद्ध न होने देने की मानव-जाति ने सदा भरसक चेष्टाएँ भी की हैं, फिर भी तो युद्धों को सदा के लिए समाप्त कर शान्ति बनाए रख पाने में मानव कभी पूर्ण काम नहीं हुआ। महाभारत का युद्ध आरम्भ होने से पहले श्रीकृष्ण भगवान् स्वयं शान्ति-दूत बनकर कौरव-सभा में गए थे। उन्होंने पाँच पाण्डव भाइयों के लिए मात्र पाँच गाँव की मांग रखकर महायुद्ध को टालने का प्रयास किया था; लेकिन दुर्योधन जैसे दुवृत्तों ने उन का प्रयास सफल नहीं होने दिया। खैर, वह तो बीते युगों की बात है। आधुनिक काल में भी प्रथम विश्व युद्ध के बाद ‘लीग आफ नेशन्स’ जैसी संस्था का गठन युद्धों की विभीषिका हमेशा के लिए समाप्त कर शान्ति बनाए रखने और उसके क्षेत्र का अनवरत विकास करते रहने के लिए किया गया था। पर कहाँ रहने दी शान्ति युद्ध-पिपासुओं ने! दूसरा विश्व युद्ध हुआ और पहले से कहीं बढ़ कर विनाशकारी प्रमाणित हुआ। उसके बाद फिर ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ (United Nations Organisation) जैसी, संस्था का गठन युद्ध से छुटकारा पाकर शान्ति-कामना से ही किया गया; पर क्या युद्धों का अन्त और शान्ति की स्थापना संभव हो पाई है? वह तो क्या होती थी, आज उसी की आड में छोटे राष्ट्रों पर युद्ध तो थोपे ही जा रहे हैं, दादा-राष्ट्रों द्वारा तरह-तरह की धमकियाँ भी दी जा रही हैं। छोटे-छोटे तो कई युद्ध हो भी चुके हैं। तीन-चार बार तो भारत जैसे स्वभाव से शान्ति प्रेमी देश को युद्ध के लिए बाध्य होना पड़ चुका है। अभी भी सीमाओं पर हमेशा भयावह युद्ध के बादल मण्डराते रहते हैं।
एक सत्य यह भी है कि कई बार शान्ति बनाए रखने के लाख प्रयत्न करते रहने पर भी राष्ट्रों को अपनी अस्मिता, सार्वभौमिकता, स्वतंत्रता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए युद्ध लड़ने पड़ते हैं। जैसे द्वापर युग में पाण्डवों को, त्रेता युग में श्रीराम को और आज के युग में कई बार भारत को लड़ने पड़े हैं। इस प्रकार शान्ति यदि मान का स्वभाव एवं काम्य विषय है, तो युद्ध परीस्थितिजन्य अनिवार्यता बन जाया करती है। यानि न चाहते हुए भी व्यक्तियों-राष्ट्रों को युद्ध करना ही पड़ता है। फिर भी इतना तो निश्चत है कि किसी भी हाल में युद्ध अच्छी बात नहीं। पराजित और विजेता दोनों को इसके दुष्परिणामों से अनिवार्यतः दो-चार होना पड़ता है। फिर भी मानव का प्रयत्न इसी दिशा में रहना चाहिए कि युद्ध न हों, शान्ति बनी रह सके।
यह एक तथ्य है कि सत्य, अहिंसा, प्रेम, भाईचारा, मानवता, विश्व बन्धुत्व जैसे शब्दों का आविष्कार भावना के स्तर पर शान्ति-प्रेमियों द्वारा शान्ति बनाए रखने के लिए ही किया गया है। असत्य, हिंसा, घृणा आदि का विरोध वास्तव में सभी तरह के लड़ाई-झगड़े और युद्ध भी समाप्त करने के लिए किया गया है। धर्म, उदारता, मानवीयता जैसी कल्पनाएँ भी शान्ति की स्थापना और विस्तार के लिए ही की गई हैं। फिर भी युद्ध समाप्त नहीं, किए जा सके। शान्ति स्थापित नहीं हो सकी। दो विलोम परस्पर नीचा दिखाने को कार्यरत हैं और सदा रहेगे – यह एक चरम सत्य हैं।
अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए अपनी Hindi in Hindi website के फेसबुक पेज को लाइक करे।