Women Empowerment Essay in Hindi महिला सशक्तिकरण पर निबंध
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Women Empowerment Essay in Hindi 150 Words
महिला सशक्तिकरण महिलाओं को अपनी स्वतन्त्रता और स्वयं का निर्णय लेने के लिए कहा जाता है। परिवार और समाज की सीमाओं के पीछे रहकर फैसले, अधिकार, विचार, मन आदि के सभी पहलुओं से स्त्री को अधिकार देने के लिए उन्हें स्वतन्त्र बनाना है। समाज के सभी क्षेत्रों में पुरूष और स्त्री दोनो को समान उपाय में एक साथ लाया जाना चाहिए। देश के उज्जवल भविष्य के लिए महिला सशक्तिकरण बहुत महत्वपूर्ण है। महिला को एक स्वच्छ और उपयुक्त पर्यावरण की जरूरत है ताकि वे प्रत्येक क्षेत्र में अपना निर्णय ले सके, भले ही यह देश, परिवार या समाज के लिए हो।
देश को विकसित करने और विकास के लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक आवश्यक हथियार के रूप में महिला सशक्तिकरण के रूप में है। कई योजनाओं को भारत सरकार द्वारा परिभाषित किया गया है ताकि महिलाओं को विकास की मुख्य धारा में लाया जा सके। यह पूरे देश की आबादी में महिला की भागीदारी का एक हिस्सा है और महिला और बच्चो के समस्त विकास को सभी क्षेत्रों में स्वतन्त्रता की आवश्यकता है।
Women Empowerment Essay in Hindi 300 Words
आज हर गांव और शहर में महिला सशक्तिकरण पर चर्चा खूब हो रही है, लेकिन इसके वास्तविक मायने कितने लोग समझ पाते हैं यह कहना कठिन है। पंडित जवाहर लाल नेहरु जी का यह वाक्य तो सभी को याद ही होगा “लोगों को जगाने के लिये”, महिलाओं का जागृत होना जरुरी है। जब भी नारी ठान ले और अपना कदम उठा ले तो परिवार, गाँव आगे बढ़ता है और राष्ट्र विकास की ओर उन्मुख होता है। भारत के लोगो ने अपने देश को भारत माँ का दर्जा दिया है, लेकिन माँ के असली अर्थ को कोई नहीं समझता, ये हम सभी भारतीयों की माँ है और हमें इसकी रक्षा और ध्यान रखना चाहिये।
आज उन सभी राक्षसी सोच को मारना जरुरी है, जो महिलाओं के अधिकारों और मूल्यों को मारते है, जैसे दहेज प्रथा, अशिक्षा, यौन हिंसा, असमानता, भ्रूण हत्या, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, बलात्कार, वैश्यावृति, मानव तस्करी और ऐसे ही दूसरे विषय। आज लगभग हर समाचार पत्र और समाचार चैनल पर रेप, दहेज़ के लिए हत्या, भ्रूण हत्या की घटनाओं से भरे पड़े मिलते हैं। महिलाओं से होने वाली हिंसा और शोषण की घटनाओं बढ़ोतरी ही देखी जा रही है। इस तरह की बुराईयों को मिटाने के लिये महिलाओं को सशक्त बनाना सबसे प्रभावशाली उपाय है।
भारत के संविधान में उल्लिखित समानता के अधिकार से पूरे भारत में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिला है। ये जरुरी है कि महिलाएँ शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रुप से मजबूत हो। परन्तु आज के युग में भी कई पिछड़े क्षेत्रों में माता-पिता की अशिक्षा, असुरक्षा और गरीबी की वजह से कम उम्र में विवाह और बच्चे पैदा करने का चलन है।
महिलाओं की समस्याओं का उचित समाधान करने के लिये महिला आरक्षण बिल-108वाँ संविधान संशोधन का पास होना बहुत जरुरी है ये संसद में महिलाओं की 33% हिस्सेदारी को सुनिश्चित करता है। पहले के मुकाबले आज के भारतीय समाज में महिलाओं की अवस्था में काफी सुधार हो रहा है।
Women Empowerment Essay in Hindi 350 Words
महिला सशक्तिकरण, भौतिक या आध्यात्मिक, शारीरिक या मानसिक स्तर पर महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा कर सशक्त बनाने की प्रक्रिया है। महिला सशक्तिकरण के अन्दर महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर सरोकार व्यक्त किया जाता है। आज महिलाओं का एक बहत बड़ा वर्ग सजग, शिक्षित व जागरूक है।
यद्यपि महिलायें आज के समाज में पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। चाहे हम रानी लक्ष्मीबाई, सरोजिनी नायडू या मीरा कुमारी को देखे या कल्पना चावला, बछेन्द्री पाल को या फिरे साइना नेह्रवाल, पी टी उषा या दीपा कामकार को पहली नेवी महिला कैप्टन या महिला पायलट हो, समाज और देश का कोई ऐसा कोना नहीं होगा, जहाँ महिलाओं ने अपनी छाप न छोड़ी हो।
फ़िर भी हमारे समाज में दहेज प्रथा, अशिक्षा, यौन उत्पीड़न, यौन हिंसा, असमानता, भूण हत्या, महिलाओं के प्रति घरेल हिंसा, वैश्यावृत्ति, मानव तस्करी, कम उम्र में विवाह तथा बच्चे पैदा करना का चलन आज भी विद्यमान है,जो नारी और समाज के उत्थान में बाँधा बनकर खड़े है ।
समाज में हो रहे इन तमाम दूरव्यवहारो, लैंगिक भेदभाव तथा समाजिक अलगाव से लड़ने के लिये संविधान में अनुच्छेद 15(1) लिंग भेदभाव पर प्रतिबंध 15(2)- महिलाओं एवं बच्चों के लिये अलग नियम, २४३ डी व २४३ टी के तेहत स्थानीय निकायों में महिलाओं को 33% आरक्षण की व्यवस्था सहित घरेलु हिंसा सरक्षा अधिनियम २००५ की व्यवस्था है। सरकार महिला आरक्षण बिलें लाने की बात कर रही है। सरकार बढ़चढ़ कर महिला दिवस तथा माँतृ दिवस का । आयोजन भी कर रही है। बेटी पढाओ-बेटी बचाओ । अभियान,महिलाओ के नाम पर कर में छूट सहित सरकार ने कई सरे । सराहनीय कदम उठाये है।
इन कानूनों का और कड़ाई से पालन के साथ -साथ लैंगिक समानता को हर एक परिवार में बचपन से ही प्रचारित प्रसारित करना होगा। महिला आरक्षण बिल जल्द संसद में पास कराने की जरूरत है। इसके अलावा सरकार और लोगों को मिलकर पीछई ग्रामीण क्षेत्रों में जाना होगा और वहाँ की महिलाओं को सरकार की तरफ़ से मिलने वाले अधिकारों से अवगत करना होगा। तभी जाकर महिलाओं का सशक्तिकरण हो पायेगा।
Women Empowerment Essay in Hindi 450 Words
परिचय
महिला सशक्तिकरण को समझने से पहले सशक्तिकरण को समझना बहुत जरूरी है। सशक्तिकरण से तात्पर्य किसी व्यक्ति की उस क्षमता से होता है जिससे उसमें यह योग्यता आ जाती है जिसमें वह अपने जीवन से जुड़े सभी फैसलों को खुद ले सके। महिला सशक्तिकरण संसार भर में महिलाओं को सशक्त बनाने की एक मुहीम है जिससे की महिलाएं खुद अपने फैसले ले सकें और हमारे इस समाज और अपने परिवार के बहुत से निजी दायरों को तोड़कर अपने जीवन में आगे बढ़ सके।
मुख्य भाग
भारत एक पुरुषप्रधान समाज है जहाँ पर पुरुष का प्रत्येक क्षेत्र में दखल होता है और महिलाएँ केवल घर-परिवार की जिम्मेदारी उठाती है साथ ही उन पर कई पाबंदियाँ भी होती हैं। भारत की लगभग 50% आबादी महिलाओं की है जो आज तक सशक्त नहीं है और बहुत से सामाजिक प्रतिबंधों से बंधी हुई है। भविष्य में इस आधी आबादी को मजबूत किये बिना हमारे देश के विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
भारतीय समाज में महिलाओं को सम्मान देने के लिए माँ, बहन , पुत्री , पत्नी के रूप में महिला देवियों को पूजने की परम्परा है लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि सिर्फ महिलाओं के पूजने से देश के विकास की आवश्यकता को पूरा किया जा सकता है। आज के समय में आवश्यकता है कि देश की आधी आबादी यानि महिलाओं का प्रत्येक क्षेत्र में सशक्तिकरण किया जाये क्योंकि यही देश के विकास का आधार बनेगी।
महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता :
पौराणिक काल में भी महिलाओं के साथ अन्याय जैसे सती प्रथा, दहेज प्रथा, यौन उत्पीड़न, पर्दा प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, लड़कियों से कम उम में काम करवाना, बाल विवाह होते थे। हांलाकि आज इनमें से ज्यादातर चीजें कम हो चुकी है परंतु आज भी कुछ ऐसी बाधाएं हैं जिनके कारण महिलाएं सशक्त नहीं हो पा रही है जिन्हें हमे दूर करना होगा।
महिला सशक्तिकरण के प्रयास :
पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले लैगिक असमानता और बुरी प्रथाओं को हटाने के लिये सरकार द्वारा कई सारे संवैधानिक और कानूनी अधिकार बनाए और लागू किये गये है। आधुनिक समाज महिलाओं के अधिकार को लेकर ज्यादा जागरुक है जिसका परिणाम हुआ कि कई सारे स्वयं-सेवी समूह और एनजीओ आदि इस दिशा में कार्य कर रहे है।
कानूनी अधिकार के साथ महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये संसद द्वारा पास किये गये कुछ अधिनियम है – एक बराबर पारिश्रमिक एक्ट 1976, दहेज रोक अधिनियम 1961, अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम 1956, मेडिकल टर्नेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1987, बाल विवाह रोकथाम एक्ट 2006, लिंग परीक्षण तकनीक (नियंत्रक और गलत इस्तेमाल के रोकथाम) एक्ट 1994, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन शोषण एक्ट 2013.
निष्कर्ष
भारतीय समाज में सच में महिला सशक्तिकरण लाने के लिये महिलाओं के खिलाफ बुरी प्रथाओं के मुख्य कारणों को समझना और उन्हें हटाना होगा जो कि समाज की पितृसत्तामक और पुरुष प्रभाव युक्त व्यवस्था है। जरुरत है कि हम महिलाओं के खिलाफ पुरानी सोच को बदले और संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों में भी बदलाव लाये।
Women Empowerment Essay in Hindi 500 Words
अपनी निजी स्वतंत्रता और स्वयं के फैसले लेने के लिये महिलाओं को अधिकार देना तथा समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिये उन्हें सक्षम बनाना ही महिला सशक्तिकरण है। भारतीय संस्कृति में महिलाओं को हमेशा से उच्च स्थान मिला हुआ है। ऐसा कहा जाता है जहाँ नारी का सम्मान होता है वहाँ देवताओ का वास होता है। देश, समाज और परिवार के उज्जवल भविष्य के लिये महिला सशक्तिकरण बेहद जरुरी है इसलिए 8 मार्च को पुरे विश्व में अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women’s Day) मनाया जाता है।
भारत में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को मारने वाले उन सभी बुरी सोच को ख़त्म करना जरुरी है, जैसे दहेज प्रथा, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, यौन हिंसा, अशिक्षा, कन्या भ्रूण हत्या, असमानता, बाल मजदूरी, यौन शोषण, वैश्यावृति, इत्यादि। देश की आजादी के बाद, भारत को बहुत चुनौतियों का सामना करना पड़ा है जिससे शिक्षा के क्षेत्र में पुरुषों और महिलाओं के बीच एक बड़ा अंतर पैदा हुआ।
महिला को उनके मौलिक और सामाजिक अधिकार जन्म से ही मिलने चाहिए। महिला सशक्तिकरण तब माना जा सकता है जब महिला को ये निम्नलिखित अधिकार दिए जाए :
1. वह अपनी जीवन शैली के अनुसार स्वतंत्र रूप से जीवन जी सकती है चाहे वह घर हो या बाहर।
2. किसी भी प्रकार की शिक्षा प्रदान करते समय उनसे भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
3. समाज के सभी क्षेत्रों में पुरुष और महिला दोनों को बराबरी में लाना बेहद जरूरी है।
4. वह घर पर या बाहर काम के स्थान, सड़क, आदि पर सुरक्षित आ जा सके।
5. उसे एक आदमी की तरह समाज में समान अधिकार मिलना चाहिए।
6. महिलाओं के प्रति लोगो के मन में सम्मान की भावना होनी चाहिए।
7. वह अपना निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र महसूस करती हों।
महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये संसद द्वारा पास किये गये कुछ अधिनियम है :
1. अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम 1956
2. दहेज रोक अधिनियम 1961
3. लिंग परीक्षण तकनीक एक्ट 1994
4. बाल विवाह रोकथाम एक्ट 2006
5. मेडिकल टर्मेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1987
6. एक बराबर पारिश्रमिक एक्ट 1976
7. कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन शोषण एक्ट 2013
हमारे देश के राष्ट्रपिता महत्मा गाँधी जी ने कहा है की जब तक हमारे देश की सभी महिला और पुरुष साथ मिलकर काम नहीं करेगे तब तक हमारे देश का पूरी तरह से विकाश नहीं होगा। पिछले कुछ वर्षों में हमें महिला सशक्तिकरण का फायदा मिल रहा है। महिलाएँ अपने स्वास्थ्य, शिक्षा, नौकरी, तथा परिवार, देश और समाज के प्रति जिम्मेदारी को लेकर ज्यादा सचेत रहती है। वो हर क्षेत्र में प्रमुखता से भाग लेती है और अपनी रुचि प्रदर्शित करती है।
अंतत: कई वर्षों के संघर्ष के बाद सही राह पर चलने के लिये उन्हें उनका अधिकार मिल रहा है। आज महिलाओं ने साबित कर दिया हैं की वो केवल पुरुषों के बराबर ही नहीं पुरुषों से आगे भी है। जो घर सँभालने के साथ साथ बाहरी दुनिया में भी अपना नाम रौशन कर रही है।
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हिंदी साहित्य में महिलाओं का योगदान
आधुनिक परिवेश में महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र में अपना अमूल्य योगदान दे रही हैं। वे आज हर क्षेत्र में पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। साहित्य-सृजन के क्षेत्र में भी वे पुरूष समाज से किसी तरह पीछे नहीं हैं। जहाँ तक साहित्य-रचना का सवाल है, अत्यंत प्राचीन समय में अर्थात् जब रचना की यह प्रक्रिया शुरू हुई, तब भी पीछे नहीं रहीं, यह बात बड़े हीं गर्व के साथ कही तथा स्वीकार की जाती है। संसार में अभी तक प्राप्त साहित्य में ऋग्वेद की रचना को प्राचीनतम माना गया है। उसकी अनेक रचनाओं की सृजन करने वाली वैदिक काल की नारियाँ ही थीं, यह एक सर्वविदित तथ्य है। इस संदर्भ में मैत्रेयी, गार्गी जैसी ऋषि-पत्नियों के नाम विशेष सम्मान के साथ लिए जाते हैं।
महिलाओं ने वैदिक काल से लेकर हिन्दी-साहित्य के भक्तिकाल तक साहित्य-सृजन का कार्य अवश्य किया होगा, पर उनके नाम एवं रचनाएँ आज बिल्कुल उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए उनकी चर्चा कर पाना भी संभव नहीं। भक्तिकाल में आकर प्रवीण राय, कृष्ण दीवानी मीरा, बीबी ताज आदि कुछ महिलाओं के नाम जरूर मिलने लगते हैं, जिन्होंने हिन्दी काव्य-रचना जगत में अपनी सृजन प्रतिभा का प्रभावशाली प्रदर्शन किया। इनके अलावा कृष्ण-भक्ति काव्य रचने वाली महिलाओं में रत्न कुँवर, कुँवर बाई, साईं, सुंदर कुँवरि, रसिक बिहारी आदि के नाम भी बड़े आदर-सम्मान के साथ लिये जाते हैं। मीरा को छोड़कर अन्य सभी के इधर-उधर बिखरे कुछ पद्य ही प्राप्त होते हैं, लेकिन उन्हीं से इनकी सृजन-प्रतिभा का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।
लोगों का यह भी मानना है कि एक ब्राह्मण युवक को काव्य प्रतिभा के प्रभाव से आलम नामक प्रसिद्ध कवि बनाने वाली महिला शेख रंगरेजिन भी एक बहुत अच्छी कवयित्री थी। उसकी रची कोई स्वतंत्र-रचना तो प्राप्त नहीं हुई पर आलम की रचनाओं के निखार और स्वरूप-निर्माण में उसका बड़ा योगदान रहा। कुण्डलिया छन्द की रचनाओं के निखार और स्वरूप-निर्माण में उसका बड़ा योगदान रहा। इसी तरह कुण्डलिया छन्द का सर्वाधिक प्रशस्त प्रयोग करने वाले कवि गिरिधर (कविराय) की पत्नी भी अच्छी कवयित्री थी। कई आलोचक यह स्वीकार करते हैं कि गिरिधर कविराय के नाम से मशहूर जिन कुण्डलियों में ‘साई’ शब्द आया है, वे उनकी इसी नाम की पत्नी द्वारा रची गई थीं। कुछ अनुसंधानकर्ताओं ने यह तथ्य भी स्पष्ट किया है कि रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि के रूप में प्रसिद्ध कवि बिहारी की पत्नी भी दोहे और कवित्त-सवैये बड़े अच्छे लिख लिया करती थी। कुछ अनुसंधानकर्ताओं ने परिशिष्ट के रूप में उसकी कुछ रचनाएँ प्रकाशित भी की हैं।
आधुनिक काल के दूसरे चरण से हिन्दी लेखिकाओं-कवयित्रियों की लगातार बढ़ती पंक्ति के दर्शन होने लगते हैं। उनमें प्रमुख हैं – महादेवी वर्मा, सुभद्राकुमारी चौहान, सुमित्राकुमारी सिन्हा, तारा पांडेय, विद्यावती कोकिल आदि। इनमें से महादेवी वर्मा छायावादी-रहस्यवादी कविता का एक संपुष्ट आधार स्तंभ रही है जो, रेखाचित्र, शब्दचित्र और अनेक सामयिक निबंध रचकर एक प्रमुख गद्य-लेखिका और शैलीकार के रूप में भी प्रख्यात हुई। सुभद्राकुमारी चौहान राष्ट्रवादी और वात्सल्य रस-प्रधान अन्य सभी ने छायावादी काव्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान किया है। ऐसा सभी प्रमुख इतिहासकार मुक्त भाव से मानते हैं।
हिन्दी गद्य-साहित्य के विकास में, विशेषकर कथा-साहित्य के विकास में कहा जा सकता है कि आधुनिक भारतीय महिलाएँ विशिष्ट योगदान दे रही हैं। आशारानी व्होरा और सुदेश शरण बहुत अर्से से पत्र-पत्रिकाओं तथा पुस्तकों के माध्यम से पाठकों के समक्ष आ रही हैं। ममता कालिया के बहुत से उपन्यास प्रकाशित होकर मान-यश अर्जित कर चुके हैं। उषा प्रियवंदा ने उपन्यास और कहानी, दोनों क्षेत्रों में सम्मान प्राप्त किया है। मन्नू भंडारी उपन्यास लेखिका और अच्छी कहानीकार तो हैं ही, उनके ‘महाभोज’ जैसे उपन्यास का नाटकीकरण होकर कई बार सफल अभिनय भी हो चुका है। इसी तरह मृदुला गर्ग, कृष्णा अग्निहोत्री के रचे उपन्यास भी बड़े चाव से पढ़े जाते हैं। कृष्णा सांबती, सुधा अरोडा, शिवानी, शांति मेहरोत्रा, सुनीता जैन, मालती जोशी, मृणाल पांडेय, इंदु बाली, ऋता शुक्ल आदि ने नई कहानी के विकास में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान किया एवं कर रही हैं। इनके अतिरिक्त कई अन्य महिलाएँ भी इस क्षेत्र में कार्यरत हैं।
इस प्रकार स्पष्ट है कि युग-साहित्य के अनुरूप अधिकांशत: प्रत्येक युग की नारी ने अपने भावावेग के कोमल-कांत संस्पर्श से युगीन साहित्य का सृजन कर अथवा फिर इस सब की प्रेरणा बनकर उसे आगे बढ़ाने का विशिष्ट कार्य किया है। आज तो वह जीवन के अन्य क्षेत्रों के समान साहित्य-सृजन के क्षेत्र में भी विशेष सक्रिय दिखाई दे रही है। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी तरह-तरह के जोखिम उठाकर वह निरंतर सक्रिय हैं।
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