यदि हिमालय न होता निबंध Yadi Himalaya Na Hota Essay in Hindi
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Yadi Himalaya Na Hota Essay in Hindi
Yadi Himalaya Na Hota Essay in Hindi 800 Words
पर्वतराज हिमालय, ऊँची और ऊँची, ऊँची-ही-ऊँची उठती हुई उसकी बर्फ से ढकी चोटियों को देख कर लगता है कि जैसे एक रोज अन्तरिक्ष का सीना चीर कर इस धरती को स्वर्ग से मिला कर एक कर देंगी। हिमालय, जिसे भारतीय भूभाग के मस्तक का मुकुट माना जाता है, एक मौन तपस्वी और उच्चता का प्रतीक उन्नत शिखर कह कर कल्पित किया जाता है। हिमालय जो निकट अतीत तक भारत के उत्तरी सीमांचलों का प्रहरी और अजेय माना जाता रहा है, जिसे अवध्य मान कर कभी हर भारतवासी इस ओर से निश्चिन्त होकर सुख की नींद सोया करता था (परन्तु सन् 1962 में हुए चीनी-आक्रमण ने इस तरह की सभी धारणाएँ समाप्त कर दी हैं), हिमालय जो अनेक तपस्वियों की पावन तपस्या भूमि रहा है; जो गंगा-यमुना तथा प्रायः सभी अन्य नदियों का भी मूल स्रोत एवं उद्गम स्थल है-वह हिमालय यदि न होता, तो?
नहीं, हिमालय के न होने की कल्पना तक हमारे लिए असह्य है। यदि हिमालय न होता, तो शायद इस पावन भारतभूमि का अस्तित्व भी नहीं होता। यह भी संभव है कि यदि भारतभूमि का अस्तित्व रहता भी, तो हिमालय जैसे अवध्य प्रहरी के अभाव में सदियों पहले ही आतताइयों, विदेशी आक्रमणकारियों ने इस धरा-धाम को लूट-खसोट और नोच-नाच कर पैरों तले रौंद डाला होता। यदि हिमालय न होता तो हमारे खेतों-खलिहानों को अपने अमृत जल से सींचकर हरा-भरा रखने वाली नदियाँ भी नहीं रहतीं। उनके आस-पास स्वतः ही उग आए पेड-पौधे, वन-वनस्पतियाँ तक न हो पातीं। तब न तो पर्यावरण की रक्षा ही संभव हो पाती और न प्रदूषण से ही बचा जा सकता। हमें फल-फूल, तरह-तरह की वनस्पतियाँ, औषधियाँ आदि कुछ भी तो न मिल पाता। सभी कुछ वीरान और बंजर ही रहता। बहुत संभव है कि तब इस भूभाग पर जीवन के लक्षण ही न दीख पड़ते।
यदि हिमालय न होता तो गंगा-यमुना जैसी हमारी धार्मिक-आध्यात्मिक आस्थाओं की प्रतीक, मोक्षदायिनी, पतित-पावन नदियाँ भी न होतीं। तब न तो हमारी आदर्श आस्थाओं के शिखर उठ-बन पाते और न पुराणैतिहासिक तरह-तरह के मिथकों का जन्म ही संभव होता। इतना ही नहीं, देवाधिदेव शिवजी तथा अन्य असंख्य देवी-देवताओं की कहानियों का जन्म भी नहीं हुआ होता। यदि हिमालय न होता तो गंगा-यमुना जैसी नदियाँ भी नहीं होतीं। इनके अभाव में इनके तटों पर बसने वाले तीर्थ धाम, छोटे-बड़े नगर, हमारी सभ्यता-संस्कृति के प्रतीक अनेक प्रकार के मन्दिर-शिवालय तथा अन्य प्रकार के स्मारक भी कभी न बन पाते। इन पवित्र नदियों के तटों पर बस कर विकसित होने वाली भारतीय संस्कृति-सभ्यता का तब स्यात् जन्म तक भी न हुआ होता।
यदि हिमालय न होता, तो आज हमारे पास निरन्तर तपस्या एवं अनवरत् अध्यवसाय से प्राप्त ज्ञान-विज्ञान का जो अमर-अक्षय कोश है, वह भला कहाँ से आ पाता ? हिमालय की घाटियों में पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों ने, पुष्पों-पत्तों और जंगली माने जाने वाले कई प्रकार के फलों ने संसार को औषधि एवं चिकित्सा-विज्ञान प्रदान किया है। हिमालय के अभाव में यह सब-कुछ मानवता को कतई नहीं मिल पाता। तब मानवता रुग्ण एवं अस्वस्थ होकर असमय में ही अपनी मौत आप मर जाती। इस हिमालय ने हमें अनेक जातियों-प्रजातियों के पशु-पक्षी भी दिए हैं कि जिनका होना पर्यावरण की सुरक्षा की दृष्टि से परम आवश्यक है। इतना ही नहीं, हिमालय ने मानवता को ज्ञान साधना की, उच्चता और विराटता की, गहराई और सुदृढ स्थिरता की जो कल्पना दी है; ऊपर उठने की जो प्रेरणा और कल्पना प्रदान की है, वह कभी न मिल पाती। तब आदमी अपने अस्तित्व एवं व्यक्तित्व में मात्र और नितान्त बौना ही बना रहता। ऋतुएँ और उनके परिवर्तित स्वरूप भी वास्तव में हिमालय की ही देन माने जाते हैं।
सोचिए, तनिक मन-मस्तिष्क पर जोर देकर सोच देखिए, यदि हिमालय न होता तो हिलेरी और शेरपा तेनजिंग नौ जैसे जवाँ मर्द कहाँ और कैसे उत्पन्न होते ? किस के उत्तुंग शिखर उन की अस्मिता को चुनौती कर के कहते कि हमारे पर चढ़ाई कर के, अपने राष्ट्रीय ध्वज फहरा कर, अपने यानि मानवता के पद-चिन्ह अंकित कर दिखाओ, तब जाने? और फिर उन शिखरों को मापने वालों का, ऐसा करते समय प्राणों का बलिदान तक कर देने वालों का तांतासा कैसे और किसके आस-पास लग पाता-यदि हिमालय न होता, तो ?
भारत का ताज, गिरिराज हिमालय यदि न होता, तो जैसाकि वैज्ञानिक मानते और कहते हैं, तब उसके स्थान पर भी एक ठाठे मारता हुआ, अथाह गहरा और आर-पार फैला समुद्र ही होता यानि आज जो भारतीय भूमि तीन ओर से समुद्र के खारे पानी से घिर रही है, तब इसकी चौथी दिशा में भी पानी-ही-पानी होता। तब भारत देश एक विशाल समुद्री टापू बन कर रह जाता। पर हिमालय होता कैसे नहीं? भारतीय उच्चता और अस्मिता के जीवन्त प्रतीक इस हिमालय को तो होना ही था। वह है और हमेशा इसी आन-बान से बना रहेगा-यह एक प्राकृतिक तथ्य है।